"व्यंजना": अवतरणों में अंतर

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:''वंजुल मंजु लतान की चारू चुभीली जहाँ सुखमा सरसार्इ।। -- सत्यनारायण कविरत्न
 
यहाँ [[रामचन्द्र]]जी के अपने वनवास के समय की सुख-स्मृतियाँ व्यंजित होती हैं जो देश-विशेषता से ही प्रकट है। इन पृथक-पृथक विशेषताओं से वर्णन के अनुसार भी व्यंग्य सूचित होता है। रस निरूपण का आगे विस्तार है।
 
==इन्हें भी देखें==