"सत्यं शिवं सुन्दरम्": अवतरणों में अंतर

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amrutam अमृतमपत्रिका, ग्वालियर
 
सत्यं शिवं सुन्दरम का रहस्य क्या है?
 
हदेव को मानने वाले मस्त क्यों रहते हैं?
 
शिव की पूजा कैसे करें।
 
शिवजी का मन्त्र कौनसा है।
 
शिव को प्रसन्न करने हेतु किस मन्त्र का जाप करें?
 
सृष्टि का सार...सत्यं-शिवं-सुन्दरम-
 
शिव की सत्ता ही सत्य है, शिव का होना ही सत्य है। एक मात्र शिव का अस्तित्व ही सत्य है। शिव के अस्तित्व को नकारना, सत्य को नकारना है। पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व, प्राणतत्व (आत्मा या ब्रह्म) के कारण है। उसके हटते ही मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। जो देह है वह आज नहीं, तो कल पंचतत्व में विलीन हो जायेगी। अतः ब्रह्म (शिव) ही " एकमात्र सत्य है, वही है जिसे अहं ब्रह्मास्मि कहा है।
 
ब्रह्मांड का मूल-हर हर हर महादेव...
ब्रह्मांड में जिस चीज का अस्तित्व है वह सर्वत्र व्याप्त ब्रह्म का मूल परब्रह्म है, उसे ही शिव कहा गया है। जिसे हम शंकर, महादेव, भोलेनाथ, कल्याणेश्वर, महेश, महादेव आशुतोष आदि कहते हैं। वह भी शिव का बड़ा अंश ही है। उसी का ही एक अंश सती, पार्वती, उमा, शक्ति, आदि के रूप में है।
 
अतः शिव और शक्ति दोनों एक ही हैं, अभिन्न हैं। हम उन्हें अपनी सुविधा से अलग-अलग कहते हैं। किन्तु वे उसी तरह से एक हैं
जैसे -
गिरा अरथ जल बीच जिमि,
कहियत भिन्न न भिन्न।
 
 
 
 
*(१) '''सत्यं शिवं सुन्दरम्''' किसी वस्तु या नीति के जाँच की कसौटी प्रस्तुत करने वाला वाक्य है। इसका अर्थ है कि कोई चीज यदि सत्य है, कल्याणकारी है, और सुन्दर है- तभी वह ग्राह्य है।