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==इतिहास एवं विकास==
संयुक्त स्कंध समवायों (Joint Stock Companies) का जन्म [[ब्रिटेन]] में [[वाणिज्यिक क्रांति|व्यापारिक क्रांति]] के समय हुआ। १७वीं और १८वीं शताब्दी में संयुक्त स्कंध समवाय के रूप में समामेलन तभी हो सकता था जब उसके लिए राजलेख उपलब्ध हो अथवा संसद् द्वारा कोई विशेष अधिनियम बना हो। ये दोनों ही तरीके अत्यधिक व्ययसाध्य तथा विलंबकारी थे। राष्ट्र की बढ़ती हुई व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी बड़ी अनिगमित भागिताएँ (unincorporated partnerships) अस्तित्व में आईं। जो कुछ भी हो, व्यापार ने एक समामेलन (amalgamation) का रूप ग्रहण किया, क्योंकि यही एक ऐसी चीज थी जिसमें अधिकतम पूँजी के संकलन के साथ साथ खतरे की भी बहुत कम गुंजाइश थी। ऐसी प्रत्येक व्यापारसंस्था की सदस्यता चूँकि बहुत अधिक रहती थी, इसलिए व्यापार का भार कुछ इने गिने प्रन्यासियों पर छोड़ दिया जाता था जिसके फलस्वरूप प्रबंध और स्वामित्व में बिलगाव हो जाता था। इस बिलगाव के साथ ही इस संबंध की समुचित विधियों के अभाव से धूर्त प्रवर्तकों के द्वारा जनता के धन का शोषण होने लगा। जैसे पानी के बबूले उठते और गायब होते हैं, उसी तरह समवाय खड़े होते और फिर विलुप्त हो जाते।
 
आतंकग्रस्त ब्रिटिश संसद् ने सन् १७२० ई. में 'बबल्स ऐक्ट' पारित किया। इस अधिनियम ने धूर्ततापूर्ण समवायों के संगठन पर प्रतिबंध लगाने के बजाय समवायों के प्रवर्तन के व्यवसाय को ही अवैध करार दे दिया। यद्यपि सन् १८२५ ई. में इस अधिनियम का विखंडन हो गया तथापि सन् १८४४ ई. में ही जाकर बड़ी भागिताओं का पंजीकरण एवं सम्मेलन अनिवार्य किया जा सका। सीमित देयता (Limited Liability) सन् १८५५ में स्वीकृत की गई तथा तत्संबंधी पूरी विधि को सन् १८५६ ई. में ठोस रूप दिया गया। तब से समवायों के अधिनियमों में यथेष्ट संशोधन और सुधार होते रहे जबकि सन् १९४८ ई. में हमें नवीनतम अधिनियम प्राप्त हुआ। इस अवधि में समवायों का संयुक्त रूप से उन्नयन होता रहा। इसको खोलनेवाली चाभी सीमित देयता रही है। भारत में पहला समवाय अधिनियम सन् १८५० ई. में पारित हुआ और सबसे अंतिम सन् १९५६ ई. में।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कंपनी" से प्राप्त