"यकृत": अवतरणों में अंतर

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amrutam अमृतम पत्रिका, Gwalior मप्र
 
लिवर की सुरक्षा के उपाय।
 
आयुर्वेद की कौनसी जड़ीबूटियों द्वारा लिवर को ठीक रखा जा सकता है।
 
जिगर को जिंदादिल बनाये रखने के लिए अमॄतं कीलिव माल्ट & कीलिव कैप्सूल कारगर है।
 
मधुमेह या डाइबिटीज की वजह भी कब्ज व उदररोग ही है।
 
पेट की खराबी कैसे सही करें?..
 
आयुर्वेद में आँतों की सूजन को आंत्रशोथ विकार बताया है। यह बीमारी लम्बे समय तक कब्ज रहने के कारण होती है। इस बीमारी में लिवर खराब ओर कमजोर होने लगता है।
आंत्रशोथ या आन्त्रक्षोभ (IBS) की समस्या से संसार की कुल जनसंख्या के लगभग एक तिहाई (33%) लोग से पीड़ित हैं।
बीमारी का कारण…लगातार कब्ज रहना, पेट की खराबी, कमजोर पाचनतंत्र, लिवर का क्रियाशील न रहना आदि आन्त्रक्षोभ (IBS) अनेकों प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकता है, यथा -
मिथ्या-आहार (Unhealthy food habits);
असात्म्य-आहार (Food sensitivity);
मिथ्या-विहार (Low physical activity);
मिथ्या-आचार (Mental stress);
आन्त्रगत संक्रमण (Intestinal infection);
विषम निद्रा (Disturbed sleep);
बीज दोष (Defective genes)
आन्त्रक्षोभ (IBS) आन्त्र में होने वाला एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी को उदरशूल, अतिसार, विबन्ध इत्यादि लक्षण होते हैं। इसके साथ-साथ रोगी को मनःअवसाद, मनःविषाद, चिन्ता, क्लम/साद, दौर्बल्य इत्यादि कष्ट भी हो सकते हैं।
इस रोग का समावेश आयुर्वेद में वर्णित वातज-ग्रहणी के अंतर्गत क्षुब्धान्त्र/आन्त्र-क्षोभ नाम से वर्णन हैं।
सम्प्राप्ति (Patho-phyiology)….उपरोक्त कारणों से, विभिन्न रोगियों के मन व शरीर में निम्न प्रकार की अनेकों विषमताएँ / विकृतियाँ पैदा हो सकती हैं -
मन में रजस् व/अथवा तमस् क्रिया की विकृति / विषमता (Cognitive dysfunction) होने से...
वात-दोष की क्रिया में विकृति / विषमता (Neuro-endocrine dysfunction) होने लगता है, जिसके फलस्वरूप...
स्थानिक वात-दोष (Local Neuro-endocrine system) की क्रिया में विकृति / विषमता होने से, देह के अनेकों अंगावयवों (विशेषकर, महास्रोतस्) में निम्न प्रकार की विकृतियाँ हो सकती हैं।
सम्बन्धित अंगावयवों (विशेषकर, महास्रोतस्) में गति-वृद्धि (Increased motility) तथा उससे उत्पन्न अतिप्रवृत्ति (Hyper-activity) हो कर अतिसार (Diarrhea) हो सकता है।
 
सम्बन्धित अंगावयवों (विशेषकर, महास्रोतस्) में गति-क्षय (Decreased motility) तथा उससे उत्पन्न अप्रवृत्ति (Hypo-activity) हो कर विबन्ध (Constipation) हो सकता है!
 
गति-क्षय (Decreased motility) हो सकते हैं। सम्बन्धित अंगावयवों (विशेषकर, महास्रोतस्) में संकोच (Spasm) हो कर उदरशूल (Pain in abdomen) हो सकता है।
 
निम्न औषधियों द्वारा आंत्रक्षोभ, आंत्र शोथ ibs व्याधि से बचाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का उल्लेख भैषज्य रत्नावली, भावप्रकाश, द्रव्यगुण विज्ञान नामक ग्रन्थों में मिलता है। यथा..
 
चित्रक, वचा, मकोय, त्रिफला, आँवला, हरड़ मुरब्बा, पपीता, इक्षु, गुलाब, गुलकन्द, पुर्ननवा, धनिया, नागरमोथा तथा पारसीक यवानी इत्यादि!
 
उपरोक्त ओषधियाँ से निर्मित कीलिव माल्ट & केप्सूल का सदैव सेवन करने से पेट तथा यकृत की सभी तकलीफ से राहत मिलती है।
 
 
कीलिव उदर सम्बंधित लगभग 45 से अधिक समस्याओं का समाधान करता है।
 
एलोपैथी चिकित्सा में पेट के रोगों का स्थाई इलाज नहीं है। बाद चिकित्सक ओर दवाएं बदलने के अलावा।
 
कीलिव कैप्सूल का इस्तेमाल तो ताउम्र करते रहने पेट साफ रहेगा और यह आँतों की रक्षा करेगा।
 
 
अधिक जानकारी के लिए amrutam की वेबसाइट सर्च करें।
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/यकृत" से प्राप्त