"अखरोट (फल)": अवतरणों में अंतर

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अखरोट 25 तरह से गुणकारी मेवा है।
 
वातरोगी, थायराइड पीड़ित मरीजों के लिए अखरोट बहुत फायदेमंद होता है।
 
अखरोट की लकड़ी से ही वायलिन, गिटार आदि संगीत के साज बनते हैं।
 
amrutam अमृतमपत्रिका ग्वालियर
 
अखरोट का छिलका…. का काढ़ा कृमिनाशक और विरेचक है। इसका काढ़ा गलग्रन्थियों के लिये उपयोगी माना जाता है और कृमिनाशक है। गठिया की बीमारी में इसका फल धातु-परिवर्तक होता है।
अखरोट का छिलका उपदंश, विसर्पिका, खुजली, कण्ठमाला इत्यादि रोगों में यह लाभकारी माना जाता है।
 
अखरोट मिंगी, छिलके के 25 विशेष गुण, जो आपके काम आ सकते हैं।
50 कि बाद मात्र 2 अखरोटकी मिंगी खाने से कभही भी वातरोग, ग्रन्थिशोथ, थायराइड नहीं सताता….
अखरोट के गुण-दोष एवं उपयोग-आयुर्वेद के मतानुसार अखरोट मधुर, किंचित् खट्टा, स्निग्ध, शीतल, वीर्यवर्धक, गरम, रुचिदायक, कफ-पित्तकारक, भारी, प्रिय, बलवर्धक तथा वातपित्त, क्षय, वात, हृदयरोग, रक्तवात, रुधिरदोष यानि खून की खराबी को दूर करनेवाला है।
कण्ठमाला-अखरोट के पत्तों का क्वाथ पीने और उसी से गाँठ को धोने से कण्ठमाला मिट जाती है।
नासूर-इसकी मिली हुई गिरी को मोम और मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करने से नासूर नष्ट हो जाता है।
नारू-इसकी खली को पानी के साथ पीसकर गरम करके सूजन पर लेपकर, पट्टी बाँधकर तपाने से सूजन उतर जाती है। १५ से २० दिनतक करनेसे नारू गलकर नष्ट हो जाता है।
कृमिरोग-अखरोट वृक्ष की छाल का क्वाथ पिलाने से आँतों के कीड़े मर जाते हैं।
अर्दित (मुँहका लकवा)- अखरोट के तेल का मर्दन करके वादी मिटानेवाली औषधियों के क्वाथका बफारा लेने से इस रोग में बड़ा लाभ होता है।
शोथ (सूजन)-पाव भर गोमूत्र में १ से ४ तोले तक अखरोट का तेल मिलाकर पान करने से शरीर की सूजन उतरती है, ऐसा शास्त्रकारोंका मत है।
दस्तावर भी होता है-अखरोट….विरेचन में अखरोट के तेल 1 से 2 ml दूध के साथ लेने से पुरानी से पुरानी कब्ज की शिकायत दूर होने लगती है।
अखरोट को संस्कृत में अक्षोट और अंग्रेजी भाषा में Walnut कहते हैं।
भावप्रकाश निघण्टु ग्रन्थ में लिखे गए संस्कृत श्लोकनुसार
पीलुः शैलभवोऽक्षोटः कर्परालश्च कीत्तितः । अक्षोटकोऽपि वातादसदृशःकफपित्तकृत् ।१२।
अर्थात-पर्याय-पर्वतीय देशों में होने वाले पीलु को ही अखरोट कहते हैं, इसका नाम शैलभवपीलु तथा कर्पराल भी है।
अखरोट के फायदे- गुण-अखरोट के गुण बादाम के समान हैं, यह अधिकतर कफ और पित्त का नाश करता है। लेकिन दो अखरोट से अधिक लेने पर पाचनतंत्र खराब कर देता है।
भाषाभेद से नामभेद-हिंदी -अखरोट। बंगाली में--अकोट। मराठी-अक्रोड। गुजराती में- अखोड। कन्नड़ में-आखोट। फारसी में चार्त गज। अ०--जोझ अपम, मगज। इं०वालनट Walnut, बेलगाम वालनट Begaum walnut. लै -एल्यूराइटिज ट्रीलोबा Aluriteis Triloba आदि अखरोट के अन्य नाम हैं।
अखरोट का वर्णन-उत्पत्ति-स्थान…. पर्वतीय भूमि-२००० फीट ऊँचाई पर। वृक्ष बहुत ऊँचे होते हैं। पत्र गोल, कुछ लम्बे मोटे दल के होते हैं। पुष्प श्वेत रंग के छोटे गुच्छेदार बहुसंख्यक होते है।
अखरोट का फल-गोल मैनफल की तरह, ऊपर की हरी छाल हटाने पर भीतर एक गुठली चार रेखा वाली खरदरी मिलती है। इसे तोड़ने पर एक मींगी ठीक मस्तिष्काकार छोटी मिलती है।
उपयोगी व्यवहार-अखरोट की मिंगी केवल खाने में लेते हैं। अन्य तरीके से फल, बीज, छिलका भी कारगर है।
मात्रा- ध्यान देंवें, अखरोट को कभी भी भड़म के साथ न लेवें। अकेला अखरोट या बादाम लेवें। एक दिन में बादाम 4 से 5 नग, दो अखरोट की मिंगी दूध के साथ ही लेवें। गर्मी में सेवन कम करें।
हमारे भारत में हिमालय काश्मीर, लद्दाख से मणिपुर तक अखरोट के वृक्ष अधिकता से होते हैं।
अखरोट वृक्ष की ऊँचाई…. ६० से ९० फुटतक होती है।
अखरोट के फूल ….सफेद रंगके छोटे-छोटे गुच्छे के रूप में लगते हैं और पत्ते ४ से ८ इंचतक लंबे, अंडाकार, नुकीले और तीन, दो कँगूरे वाले होते हैं। इसके पत्ते संकोचक और पौष्टिक होते हैं तथा धातु-परिवर्तक और शरीर की क्रियाओं को ठीक करने वाले बताए हैं।
अखरोट फल-अखरोट के फल गोल और मैनफल के समान होते हैं। फल के भीतर बादाम की तरह मींगी निकलती है।
अखरोट दो प्रकार का होता है-एक को अखरोट और दूसरे को रेखाफल कहते हैं। इसके पौधे की लकड़ी बहुत ही मजबूत, अच्छी और भूरे रंग की होती है। जिससे वायलिन, गिटार बनते हैं।
 
[[चित्र:Hazelnuts.jpg|thumb|कॉमन हेज़ल से हेज़लनट्स]]
[[चित्र:Chestnut.jpg|thumb|चेस्टनट]]