"वायुगतिकी": अवतरणों में अंतर

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==समरूप प्रवाह (Similar flows)==
वायु जैसे अल्प-श्यान तरल के गतिसमीकरण बन तो जाते हैं, किंतु सामान्यतया वे हल नहीं हो पाते। अतएव [[वैमानिकी]] (aeronautics) में प्रयोग करके परिणाम प्राप्त किए जाते हैं; किंतु पूरे पैमानेवाले पिंडों (full scale objects) पर प्रयोग करना अत्यंत व्यय और श्रमसाध्य है। पिडों के छोटे प्रतिरूपों (prototypes) को [[बात सुरंग]] (wind tunnal) में लटकाकर, समुचित वायुप्रवाह में उनकी प्रतिक्रिया देखी जाती है। वैमानिक समस्याओं में वायु को परिपूर्ण माना जा सकता है। उस स्थिति में यह गणितसिद्ध तथ्य है कि पिंड का परिमाण, अथवा उसका वेग, या तरल का घनत्व कुछ भी हो, समरूपत: गतिवान समरूप पिंडों से समरूप वायुप्रवाहों का जनन होगा। द्रव तरल के लिए भी यह सत्य है। यदि 400 मील प्रति घंटे से बड़े वेगों का सामना हो, तो समरूपता के लिए यह ध्यान रखना होगा कि जलवाले प्रयोगों में वेगों का जलीय ध्वनिवेग से वही अनुपात रहे जो वायुवाले प्रयोगों में वायु का ध्वनिवेग से है, अर्थात् जलवाले वेग वायु वालों के लगभग चौगुने हों। श्यानता से प्रभावित तरल प्रवाहों में समरूपता के लिए आवश्यक है कि दोनों की रेनोल्ड संख्या, '''pvl m''', वही रहे। यहाँ '''m''' तरल की श्यानता, '''r''' उसका घनत्व, '''v''' उस में होकर पिंड का वेग और '''1''' उस पिंड का परिमाण परिभाषित करनेवाली कोई समुचित लंबाई है, जैसे वायुयान के लिए उसकी लंबाई और गोले के लिए उसका व्यास। यदि किसी प्रवाह की [[रेनोल्ड संख्या]] लघु है, जो उस गति में श्यानता का महत्वपूर्ण प्रभाव होगा और वह सीरे, या भारी तेल, के जैसा प्रवाह देगा।
 
==सुप्रवाही पिंड के परित: प्रवाह==
परिकल्पित अश्यान (inviscid) तरल के सिद्धांत का एक निष्कर्ष यह है कि यदि कोई पिंड ऐसे तरल में चलता है जो केवल पिंड के कारण ही विरामावस्था को छोड़े हुए है, तो पिंड के परित: प्रवाहप्रकार अद्वितीय रूप से पिंड के आकार और उसकी गति से निर्धारित हो जाता है और पिंडपृष्ठ के विभिन्न बिंदुओं पर तरल जो दबाव लगाता है, उनका परिणामी शून्य होता हैं, भले ही उनका आघूर्ण शून्य न हो। यह स्थिति वायुयान पक्षक जैसे चपटे सुप्रवाही पिंड पर उपलब्ध होती है। जो भी थोड़ा-बहुत [[कर्ष]] (drag) रहता है, वह केवल [[त्वक्घर्षण]] (skin friction), अर्थात् पृष्ठ पर वायुघर्षणजनित स्पर्शरेखीय बलों, के कारण होता है। बड़ी रेनोल्ड संख्यावाले प्रवाहों में त्वक्घर्षण पिंडपृष्ठ से लगी अत्यंत पतली परत में, जिसे [[परिसीमा स्तर]] (boundary layer) कहते हैं, सीमित रहता है। इस स्तर के भीतर का प्रवाह अत्यंत जटिल है। स्तर के बाहर का प्रवाह [[धारारेखी]] अश्यान तरल जैसा होता है। जब तक पक्षक का वेग से आपात कोण (incidence angle) अत्यधिक न हो, पक्षक के परित: प्रवाह धारारेखी होगा, कर्ष कम होगा और पक्षक पर [[उत्थापक बल]] (lift) लगाएगा, जो आपात कोण के साथ बढ़ेगा। यदि आपात कोण एक सीमा से बढ़ जाता है, तो प्रवाह धारारेखी न रहकर '''विक्षुब्ध''' (turbulent) हो जाता है और पक्ष अव्यवस्थित होने लगता है (अर्थात् stalls); कर्ष एकदम बए जाता है और उत्थापक बल आपात कोण के बढ़ने पर कुछ कम होने लगता है। कम आपात कोण की अवस्था में भी बलों का सैद्धांतिक विवेचन जटिल है; विशेषकर परिमित परिमाण के पक्षक में [[प्रेरित कर्ष]] (induced drag), [[पार्श्व कर्ष]] (profile drag) आदि, पर विचार करना होता है। मुक्त उड़ान (free flight) में [[स्थायित्व]] (stability) की समस्या भी उपस्थित हो जाती है। उड़ानविज्ञान में इनका विवेचन अत्यंत महत्व का है।
 
==इन्हें भी देखें==