"यशवंतराव होलकर": अवतरणों में अंतर

महाराजा यशवंत राव होलकर का मृत्यु स्थल भनपुरा से भानपुरा किया जहां तक मेरी समझ है मालवा में यही भानपुरा है जिसका जिक्र उनके मृत्यु स्थल के लिए पहले से लिखा था
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|image= Yashwant Rao Holkar I.jpg
|name = चक्रवर्ती छत्रपति महाराजासरदार यशवंतराव होलकर सम्राट
|caption = चक्रवर्ती छत्रपति महाराजासरदार यशवंतराव होलकर सम्राटहोल्कर
|title =''[[महाराजा]]'' ([[इंदोर सम्राट(राजा ओ के राजा),,मराठा साम्राज्य{{!}}राज्य|इंदोर]])<br>'' आली जाह'' <br>'' जुबदतुल उमरा'' (Best of the Army)<br>'' बहादुर उल-मुल्क'' (साम्राज्य के हीरो)<br>'' फर्जंद इ अर्जुमंद'' (Son of the Nobleman)<br>'' नुस्रत जंग'' (Who Help in War)''<ref>[http://www.royalark.net/India/indore4.htm indore4] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20190203161313/http://www.royalark.net/India/indore4.htm |date=3 फ़रवरी 2019 }} Raised to the titles Ali Jah, Zubdat ul-Umara, Bahadur ul-Mulk, Farzand-i-Arjmand and Nusrat Jang by the King of Delhi ([[Akbar Shah II]]) in 1807</ref>
|religion = [[हिन्दू]]
|full name = हिज हाईनेस महाराजाधिराज राज राजेश्वर चक्रवर्ती सवाई श्रीमंत यशवंतराव होलकर
|coronation = जनवरी1799
|birth_date = 3 दिसेंबर 1776
|birth_place =[[वाफगांव, पुणे]], [[मराठा साम्राज्य]]<br>(अब [[महाराष्ट्र]], [[भारत]])
|death_date = 28 अक्तूबर1811
|death_place =[भानपुरा[भनपुरा]], [[मालवा]]
|reign =(as regent. 1799 – 1807)<br> (r. 1807 - 1811)
|successor =[[मल्हारराव होलकर द्वितीय]]
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|issue =
}}
'''चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होलकर''' [[तुकोजीराव होलकर]] का पुत्र था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। तुकोजी की मृत्यु पर (1797) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के राज्यहस्तक्षेप हतियाना हडपनिती ओरतथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (1797) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्या बाई]] का संचित कोष मिलहाथ आ जाने से (1800 ई) उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। 1802 में उसने [[पेशवा]] तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को एकसाथ पूर्णतया पराजित किया जिससे पेशवा ने बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (31 दिसम्बर 1802)। फलस्वरूप [[द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध]] छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण यशवंत राजे ने मराठासंघ छोड़ने केमें कारणयशवंतराव मराठा संघ कीने बड़ी गलती थीकी क्योंकि भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा। शुरुवातपहले सेता यशवंतराव ने मॉनसन पर विजय पाई (1804), किंतु, फर्रूखाबाद (नवम्बर 17) तथा डीग (दिसंबर 13) में उसकी पराजय हुई। फलस्वरूप उसे अंग्रेजों से [[संधि (व्याकरण)|संधि]] स्थापित करनी पड़ी (24 दिसबंर, 1805) अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर 1811)।
 
एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले पुरे विश्व मे अंग्रेजो को हराने वाला एकमात्र शासक, एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी।
 
इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - चक्रवर्ती छत्रपति महाराजा यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है।
 
पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासतके मराठा साम्राज्यरियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान [[महाराणा प्रताप]] और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया।
 
इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए।
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इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए।
 
इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है।
 
== संदर्भ ग्रंथ ==