"जेरेमी बेन्थम": अवतरणों में अंतर

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{{notability}}[[चित्र:Jeremy Bentham by Henry William Pickersgill detail.jpg|right|thumb|250px|जेरेमी बेंथम]]
[[File:Bentham - Defence of usury, 1788 - 5231094.tif|thumb|''Defence of usury'', 1788]]
'''जेरेमी बेन्थम''' (Jeremy Bentham) (15 फ़रवरी 17841748 – 6 जून 1832) [[इंग्लैण्ड]] का न्यायविद, [[दार्शनिक]] तथा विधिक व सामाजिक सुधारक था। वह [[उपयोगितावाद]] का कट्टर समर्थक था। वह [[प्राकृतिक विधि]] तथा [[प्राकृतिक और विधिक अधिकार|प्राकृतिक अधिकार]] के सिद्धान्तों का कट्टर विरोधी था।
 
सन् १७७६ में उसकी 'शासन पर स्फुट विचार' (Fragment on Government) शीर्षक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें उसने यह मत व्यक्त किया कि किसी भी [[विधि|कानून]] की उपयोगिता की [[कसौटी]] यह है कि जिन लोगों से उसका संबंध हो, उनके आनंद, हित और सुख की अधिक से अधिक वृद्धि वह करे। उसकी दूसरी पुस्तक 'आचार और विधान के सिद्धांत' (Introduction to Principles of Morals and Legislation) १७८९ में निकली जिसमें उसके [[उपयोगितावाद]] का सार मर्म सन्निहित है। उसने इस बात पर बल दिया कि 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' ही प्रत्येक विधान का लक्ष्य होना चाहिए। 'उपयोगिता' का सिद्धांत वह [[अर्थशास्त्र]] में भी लागू करना चाहता था। उसका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति को, किसी भी तरह के प्रतिबंध के बिना, अपना हित संपन्न करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिए। [[ब्ब्याज|सूदखोरी]] के समर्थन में उसने एक पुस्तक 'डिफेंस ऑव यूज़री' (Defence of Usury) सन् १७८७ में लिखी थी। उसने गरीबों संबंधी कानून (पूअर लाँ) में सुधार करने के लिए जो सुझाव दिए, उन्हीं के आधार पर सन् १८३४ में उसमें कई संशोधन किए गए। पार्लियामेंट में सुधार कराने के संबंध में भी उसने एक पुस्तक लिखी थी (१८१७)। इसमें उसने सुझाव दिया था कि [[मतदान]] का अधिकार प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को मिलना चाहिए और चुनाव प्रति वर्ष किया जाना चाहिए। उसने बंदीगृहों के सुधार पर भी बल दिया। और १८११ में 'दंड और पुरस्कार' (Punishments and Rewards) शीर्षक एक पुस्तक लिखी।