"नंद वंश": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 18:
मैं जोर देकर कहना चाहूंगा, महापद्मनंद ऐसा राजा या शासक नहीं था, जिसकी हम उपेक्षा करें। उसकी चुनौतियाँ
यह ठीक है कि उसकी सामाजिक औकात कमजोर थी और यह भी मान लिया कि वह “नीच -कुलोत्पन्न” था। वह किसी राजा का बेटा नहीं, एक फटेहाल नाई का बेटा था, जैसा कि कर्टियस ने लिखा है कि ‘उसका पिता नाई था, जो दिन भर अपनी कमाई से किसी तरह पेट भरता था।’ ऐसे फटेहाल व्यक्ति का बेटा यदि एक बड़े निरंकुश राजतन्त्र का संस्थापक बनता है, तब इसे एक उल्लेखनीय घटना ही कहा जाना चाहिए। हमें इस बात की खोज भी करनी चाहिए कि इसके कारण तत्व क्या थे और पूरे इतिहास-चक्र पर इस घटना का कोई प्रभाव पड़ा या नहीं?
पंक्ति 35:
महापद्मनंद के व्यक्तित्व का आकलन हमें इस नतीजे पर लाता है कि व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है, जात और कुल नहीं। उसके समय तक मनु की संहिता भले ही नहीं बनी थी, लेकिन वर्णव्यवस्था समाज में अपनी जड़ें जमा चुकी थीं और उसी के दृष्टिकोण से वह अनभिजात और नीचकुलोत्पन्न था, शूद्र था। उसने इन तमाम उलाहनों को अपने व्यक्तित्व विकास में बाधक नहीं बनने दिया। किसी भी आक्षेप की परवाह किये बिना उसने राजसत्ता अपने बूते हासिल की। उसने एक राज, एक देश को अपने राजनैतिक चातुर्य और पराक्रम से एक राष्ट्र में परिवर्तित कर दिया। कुलीनता की पट्टी लटकाये राजन्यों को मौत के घाट उतार दिया, या किनारे कर दिया और अपने द्वारा निर्मित राष्ट्र को व्यवस्था से बाँधने की पूरी कोशिश की। ऐसा नहीं था कि नंदों ने विद्वानों की कद्र नहीं की; जैसा कि चाणक्य ने अपने अपमान को लेकर ऐतिहासिक कोहराम खड़ा कर दिया था। चाणक्य कितना विद्वान था, यह अलग विमर्श का विषय है और उसके अपमान की कहानी एकतरफा है। लेकिन सच यह है कि नंदों ने विद्वानों को राज्याश्रय देने का आरम्भ किया था। उसने उत्तर पश्चिम इलाके से व्याकरणाचार्य पाणिनि को राजधानी पाटलिपुत्र में आमंत्रित किया। इतिहासकार नीलकंठ शास्त्री के अनुसार पाणिनि नन्द दरबार के रत्न और राजा के मित्र थे। व्याकरण और भाषा विज्ञान की विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक ‘अष्टाध्यायी’ की रचना महापद्मनंद के संरक्षण में पाटलिपुत्र में हुई, जिस पर भारत हमेशा गर्व कर सकता है। कात्यायन, वररुचि, वर्ष और उपवर्ष जैसे प्रकांड विद्वान न केवल इसी युग में हुए बल्कि इन सब से नन्द राजाओं के मधुर रिश्ते रहे और इन सब को राज्याश्रय मिलता रहा। हालांकि कौटिल्य अथवा चाणक्य की ऐतिहासिकता पर प्रश्न उठते रहे हैं, लेकिन उसे लेकर जो आख्यान हैं उससे यही पता चलता है कि नंदों द्वारा विद्वानों को प्रोत्साहन देने की परंपरा से ही आकर्षित होकर आश्रय पाने की अभिलाषा से वह नन्द दरबार में गया और जैसी कि कथा है अपमानित हुआ। अभिलाषा गहरी होती है, तब अपमान भी गहरा होता है। कथा से जो सूचना मिलती है, उससे उसके अपमान का भी अनुमान होता है। लेकिन कथानुसार भी चाणक्य इतना विद्वान तो था ही कि उसने सम्पूर्ण परिदृश्य का जज्बाती नहीं, बल्कि सम्यक विश्लेषण किया। उसने पुष्यमित्र शुंग की तरह मौर्य वंश को ध्वस्त कर द्विज शासन लाने की कोशिश नहीं की। महापद्मनंद ने शूद्र जनता के मनोविज्ञान को झकझोर दिया था। इसकी अहमियत चाणक्य समझता था। उसकी शायद यह विवशता ही थी कि उसे एक क्षत्रियोत्पन्न बालक चन्द्रगुप्त को नंदों के विरुद्ध खड़ा किया।
ऐसा नहीं था कि धननंद के समय मगध की राज-व्यवस्था ख़राब थी। 326 ईसापूर्व में जब सिकंदर भारत आया तब कई कारणों से वह झेलम किनारे से ही लौट गया7 यह सही है कि उसकी सेना एक लम्बी लड़ाई के कारण थक चुकी थी और अपने वतन लौटना चाहती थी। लेकिन यह भी था कि पश्चिमोत्तर के छोटे-छोटे इलाकों में जो राजा थे उन्हें अपेक्षाकृत बड़ी सेना से भयभीत कर देना और पराजित कर देना तो संभव था, लेकिन उसने जैसे ही नन्द साम्राज्य की बड़ी सेना का विवरण सुना तो उसके हाथ-पांव काँप गए। सिकंदर का हौसला पस्त हो गया। सिकंदर
कुल मिला कर मैं इस बात पर पुनः जोर देना चाहूंगा कि नंदों, खास कर महापद्मनंद के साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया है। आज इस ज़माने में जब हमने इतिहास को नीचे से देखने का सिलसिला आरम्भ किया है, हमारी कोशिश होनी चाहिए कि महापद्मनंद की भूमिका पर समग्रता और ईमानदारी पूर्वक विचार करें। उसे अनभिजात और नीचकुलोत्पन्न कह कर हम उसकी अब और अधिक अवहेलना नहीं कर सकते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लगभग सभी मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भी उसकी उपेक्षा की। कोसंबी और नेहरू सरीखे इतिहास-समीक्षकों ने भी उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। इतिहासकार के. एल. नीलकंठ शास्त्री की हम सराहना करना चाहेंगे कि उन्होंने पहली दफा स्वतंत्र रूप से नन्द राज वंश पर काम किया और महापद्मनंद की भूमिका को रेखांकित किया। शास्त्री के शब्दों में “नंदों के उत्थान को निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है। पुराणों में इस राजवंश को शूद्रों के शासन का अगुआ और इसी कारण अधम कहा गया है।”
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