"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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amrutam अमृतम पत्रिका, ग्वालियर
 
माँ दुर्गा व्व कौनसा शक्तिशाली मन्त्र है, जिसके जाप से सब दुःख मिट जाते हैं?..
 
हमें माँ नवदुर्गा की उपासना क्यों करना चाहिए?...
 
नवरात्रि पर कौनसा मन्त्र फलदाता है?..
 
माँ को कैसे प्रसन्न करें...
माँ दुर्गा का एक रहस्यमयी मन्त्र की ये 15 बाते आपको धन-दौलत, महा ऐश्वर्य प्रदान करेगी…
रुक जाना नहीं, कहीं तुम हार के,
 
जीवन में फिर भी मिलेंगे साये बहार के ….
 
दुनिया के सभी दुःख मिटाने के लिए माँ दुर्गा के इस मन्त्र की एक माला सुबह 9 बजे और रात को 9 बजे 9 महीने, 9 दिन, 9 घण्टे करके देखें। जीवन के सारे दुःखों का नाश न हो जाए, तो कहना। इसे अपनी नाभि को सुनाएं या स्टोर करें।
मुझे कोई मिल गया था, सरेराह चलते-चलते…याद रखें नीचे लिखे मन्त्र की एक माला प्रतिदिन 9 मिनिट में पूरी करें। यह अदभुत दुःख भंजन उपाय बनारस के एक सिद्ध अवधूत अघोरी द्वारा 35 साल पहले बताया था।
दतिया पीताम्बर पीठ के स्वामीजी भी इस मन्त्र जाप की सलाह देते थे।
शरीर के नवद्वार की रक्षक दुर्गा…हथियाराम मठ के परमहंस बाबा विश्वनाथ जी यति कहते थे कि माँ नवदुर्गा हमारे शरीर के नवद्वार यानि 9 छिद्र जैसे- 2 आंख, 2 कान, 2 नाक, मुख, नाभि, लिंग-गुदा की रक्षक तथा मालिक है। इनके असन्तुलन से हमारा भाग्य खराब होता है।
महर्षि मार्केंडेय ने दुर्गा सप्तशती में लिखा है कि नवद्वार की शुद्धि के बिना दुःख-संताप मिट ही नहीं सकते।
रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि बिना शक्ति उपासना के शरीर में शक्ति का संचार हो ही नहीं सकता।हमारी देह ही सिद्ध शक्तिपीठ ओर शक्तिशाली है।
भटकने वाले अगर भगवती दुर्गा की उपासना करें, तो ऊर्जा का स्पन्दन होने लगता है।
दुनिया में केवल माँ ही है, जो बिना बोले दुःख-दर्द समझती है।
भोलेनाथ ने मां को सम्मान देने के लिए पूर्णमा तिथि की रचना कर विश्व को यह संदेश दिया कि केवल माँ ही पूर्ण हैं। माँ के अलावा इस दुनिया में सब अपूर्ण हैं और अधूरे ही रहेंगे।
दुर्गा सप्तशती रहस्य के अनुसार सच्चाई यह है कि नवरात्रि में मां का नाम लेने भर से ही माँ अपने बच्चों को सभी दुःख-दर्द, कष्ट से बचाती है।
अगर निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें और यदि विधि-विधान के साथ मां की पूजा-आराधना ना भी की जाए, तो भी साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नवरात्रि में कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है और पूजा का कई गुना फल मिलता है।
एक मंत्र जो महाशक्तिशाली है.. जिसका नवरात्रि के नौ दिनों या किसी एक दिन उच्चारण करने से मां प्रसन्न होती हैं और भक्त की व्याधि, रोग, पीड़ा और दरिद्रता को नष्ट कर भक्त को उत्तम स्वास्थ्य और धन संपत्ति का वरदान देती हैं।
लेकिन स्थाई धन, महालक्ष्मी की कामना हो, तो 9 महीने 9 दिन, 9 घण्टे करके देखें। जीवन चमत्कारों से भर जाएगा।
दुर्गा सप्तशती में इस मंत्र का उल्लेख मिलता है।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
 
स्वस्थैःस्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
 
दरिद्रायदुःखभयहारिणी का त्वदन्या
 
सर्वोपकारकरणाय सदाऽचित्ता।।
 
अर्थात माँ के मंत्र का अर्थ है कि- हे मां दुर्गा! आपके स्मरण से मेरे भय-भ्रम, चिन्तया, क्लेश, तनाव दुर हो। मुझे स्वस्थ जीवन प्रदान करो।
एक तेरा साथ मैया, 2 जहाँ से प्यारा है, तू है, तो सब सहारा है…..
करती स्वस्थ मनुष्यों द्वारा चिंतन करने पर हमें परम कल्याणमयी सदबुद्धि दो। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली हे जगत्जननी देवी मां! आपके सिवा मेंरा दूसरा कौन है।
मेरा चित्त, मन, दया तथा सभी का उपकार के लिए भरा रहे।
अतः इस मंत्र का जप से मुझे समस्त रोग, व्याधि, जरा, पीड़ा, दुःख, दरिद्रता से मुक्ति मिले।
तांत्रिक जानकार इस महामंत्र का सम्पुट लगाकर नवचंडी का पाठ नवरात्रि में जरूर करते हैं। इस मन्त्र के जाप से कष्टों से मुक्ति होने की मान्यता है और महामाया की अनंत कृपा प्राप्त होती है। यह ऋषियों का वचन है।
भगवान बुद्ध ने भी की थी शक्ति की उपासना… उन्होंने धम्मपद में लिखा है कि जीवन मिलना भाग्य की बात है, मृत्यु होना समय की बात है, लेकिन गुजरने के बाद भी दुनिया के दिलों में जीवित रहना सिर्फ कर्मों की बात है। यदि ये कर्म जाप के रूप में माँ को अर्पित हों।
भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म के भक्तों को एक मन्त्र बताया, जिसे सभी बौद्ध मठों में चीन, जापान कादि समृद्ध देशों में हर बौद्ध धर्म के मानने वाले जपकर ही भोजन करते हैं। यह धनदायक मन्त्र अपनी लभी को हमेशा सुनाते रहें…
!!ॐ मणिपद्मे हुम्!! इस मन्त्र का संबंध अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्त्व) से है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म का मूल मंत्र है।
यह प्रायः पत्थरों पर लिखा जाता है या फिर कागज पर लिख कर पूजाचक्र में लगा दिया जाता है। मान्यता है कि इस पहिये को जितनी बार घुमाया जायेगा यह उतनी बार मंत्र बोलने के बराबर फल देगा।
 
हिन्दू [[श्रुति]] ग्रंथों की कविता को पारम्परिक रूप से '''मंत्र''' कहा जाता है। उदाहरण के लिए [[ऋग्वेद संहिता]] में लगभग १०५५२ मंत्र हैं। [[ॐ]] स्वयं एक मंत्र है और ऐसा माना जाता है कि यह पृथ्वी पर उत्पन्न प्रथम ध्वनि है।
 
इसका शाब्दिक अर्थ 'विचार' या 'चिन्तन' होता है <ref> संस्कृत में '''मननेन त्रायते इति मन्त्रः''' - जो मनन करने पर त्राण दे वह '''मन्त्र''' है </ref> । 'मंत्रणा', और 'मंत्री' इसी मूल से बने शब्द हैं । मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं।<ref>श्रीमद्भगवदगीता - टीका श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल, प्रथम खण्ड, अध्याय 1, श्लोक 1</ref>
 
काफी चिन्तन-मनन के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर '''मंत्र''' कह देते हैं। "षडकर्णो भिद्यते मंत्र" (छः कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है।
 
== आध्यात्मिक ==