"वेदान्त दर्शन": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
संजीव कुमार (वार्ता | योगदान) छो 2409:4063:6E9B:81D2:1277:CC14:F8FA:A375 (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 5210024 को पूर्ववत किया टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना |
Vedant टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 16:
: ''वेदादि में विधिपूर्वक अध्ययन, मनन तथा उपासना आदि के अन्त में जो तत्त्व जाना जाये उस तत्त्व का विशेष रूप से यहाँ निरूपण किया गया हो, उस शास्त्र को ‘वेदान्त’ कहा जाता है।
==Vedant ==
ऊपर कहा जा चुका है ‘वेदान्त’ शब्द मूलतः उपनिषदों के लिए प्रयुक्त होता था। अलग-अलग संहिताओं तथा उनकी शाखाओं से सम्बद्ध अनेक उपनिषद् हमें प्राप्त हैं। जिनमें प्रमुख तथा प्राचीन हैं - ईश, केन, कठ, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य तथा बृहदारण्यक। इन उपनिषदों के दार्शनिक सिद्धान्तों में काफी कुछ समानता है किन्तु अनेक स्थानों पर विरोध भी प्रतीत होता है। कालान्तर में यह आवश्यकता अनुभव की गई कि विरोधी प्रतीत होने वाले विचारों में समन्वय स्थापित कर सर्वसम्मत उपदेशों का संकलन किया जाये। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए बादरायण व्यास ने [[ब्रह्मसूत्र]] की रचना की जिसे वेदान्त सूत्र, शारीरकसूत्र, शारीरकमीमांसा या [[उत्तरमीमांसा]] भी कहा जाता है। इसमें उपनिषदों के सिद्धान्तों को अत्यन्त संक्षेप में, सूत्र रूप में संकलित किया गया है।
|