"चंद्रदेव": अवतरणों में अंतर
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{{Hdeity infobox|<!--Wikipedia:WikiProject Hindu mythology-->
image=Brihaspati.jpg|name=चंद्र देव|devanagari=चंद्र देव|affiliation=[[ग्रह]] एवं [[देवता|देव]] और ब्रह्मा का अवतार|god_of=चाँद, रात, पौधे और वनस्पति के देवता|abode=[[चंद्रमा|चंद्र लोक]]|mantra=ॐ सोम सोमय नमः|weapon=रस्सी और अमृत पात्र|consort=[[रोहिणी]](मुख्य पत्नी),[[रेवती]]
रात, पौधे, अवैध संभोग, चंद्रमा और वनस्पति के देवता|children=[[वर्चस]]
'''चन्द्र देव''' ({{lang-sa|चन्द्र|चाँद|चमक अथवा चन्द्रमा}}), जिसे '''सोम''' के रूप में भी जाना जाता है, एक हिन्दू देवता है जो चन्द्रमा का देवता माना जाता है। यह रात्रि के समय रोशन करने के लिए रात्रि, पौधों और वनस्पति से सम्बंधित माना जाता है। [[ब्रह्मा]] का चन्द्र रूप लेने का मूल उद्देश्य था कि रात्रि काल में पाप न हो। इन्हें [[नवग्रह]] (हिन्दू धर्म में नौ ग्रह) और [[दिक्पाल]] (दिशाओं के पालक) में से एक माना जाता है।{{sfn|Dalal|2010a|p=394}} पुराणों के अनुसार इनके पिता का नाम महर्षि [[अत्रि]] और माता का नाम देवी [[अनसूया|अनुसूया]] था। चंद्रदेव का विवाह [[दक्ष प्रजापति]] और [[वीरणी]] की साठ में से सत्ताईस कन्याओं के साथ हुआ था और इन्हीं कन्याओं को सत्ताईस नक्षत्र भी कहा गया है। इन कन्याओं में चंद्र रोहिणी से सर्वाधिक प्रेम करते थे।
== चंद्रमा का जन्म ==
==सन्दर्भ==▼
एक बार [[त्रिदेवी|त्रिदेवियों]] को अपने सतीत्व पर अहम् हो गया। उन्हें लगा कि उनके समान पतिव्रता स्त्री इस विश्व में कोई नहीं हैे। एक बार भगवान [[विष्णु]] के भक्त देवऋषि [[नारद मुनि|नारद]] वहां आ पहुंचे और उन्होंने त्रिदेवियों को महर्षि [[अत्रि]] की पत्नी [[अनसूया|अनुसूया]] के सतीत्व के बारे में बताया जिससे उनके अहम को बहुत ठेस पहुंची। उन्होंने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने को कहा। तब [[त्रिदेव]] एक ही समय में महर्षि [[अत्रि]] के आश्रम में आए। तीनों देवों का एक ही उद्देश्य था [[अनुसूया]] का सतीत्व नष्ट करना। तीनों देवों ने [[साधु]] का वेश लिया और [[अनुसूया]] से भोजन करवाने की मांग की और ये शर्त रखी कि उन्हें नग्न अवस्था में [[भोजन]] करवाया जाए। [[अनुसूया]] ने महर्षि [[अत्रि]] का चरणोदक तीनों देवों पर छिड़क दिया जिससे त्रिदेव छोटे छोटे बालकों के रूप में परिवर्तित हो गए और [[अनुसूया]] की गोद में खेलने लगे। जब काफी देर तक त्रिदेव अपने धाम नहीं लौटे तब त्रिदेवियाँ उन्हें खोजती हुई महर्षि [[अत्रि]] के आश्रम में आ गयीं और देवी अनुसुया के पास आईं। [[सरस्वती देवी|सरस्वती]], [[लक्ष्मी]], [[पार्वती]] ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया। समय आने पर अनुसूया के गर्भ से भगवान [[विष्णु]] ने [[दत्तात्रेय]] , भग्वान [[ब्रह्मा]] ने चंद्र और भगवान शंकर ने [[दुर्वासा]] के रूप में जन्म
लिया
== चंद्रदेव को श्राप ==
चंद्रदेव का [[विवाह]] [[ब्रह्मा]] के पुत्र [[दक्ष प्रजापति|प्रजापति दक्ष]] और उनकी पत्नी [[वीरणी]] की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। चंद्र इनमें से रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। कहते हैं चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से इतना प्रेम करने लगे कि अन्य 26 पत्नियां चंद्रमा के बर्ताव से दुखी हो गईं. जिसके बाद सभी 26 पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चांद की शिकायत की. बेटियों के दुख से क्रोधित [[दक्ष]] ने चंद्रमा को श्राप दे डाला [[दक्ष]] के श्राप के बाद चंद्रमा क्षयरोग के शिकार हो गए। श्राप से ग्रसित होकर चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा। इससे पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ने लगा।
== श्राप से मुक्ति ==
चंद्रदेव ने भगवान [[विष्णु]] के कहने पर प्रभास तीर्थ में जाकर १०८ बार [[महामृत्युंजय मन्त्र]] का जप किया तथा भगवान [[शिव]] की कृपा से उस श्राप से मुक्ति पाई। आज ये स्थान भगवान [[शंकर]] का [[सोमनाथ मन्दिर|सोमनाथ ज्योत्रिलिंग]] कहलाता है।
▲== सन्दर्भ ==
{{reflist}}
* [[ब्रह्मा]]
* [[अत्रि]]
* [[अनसूया]]
* [[दक्ष प्रजापति]]
===स्रोत===
* {{cite book|last=Dalal|first=Roshen |title=Hinduism: An Alphabetical Guide |url=https://books.google.com/books?id=DH0vmD8ghdMC&pg=PA393 | year=2010a |publisher=पेंगुइन बुक्स इंडिया |isbn=978-0-14-341421-6 |page=394|language=en}}
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