"त्रिविम रसायन": अवतरणों में अंतर

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विन्यासरसायन के प्रारंभिक इतिहास का वास्तविक अध्ययन प्रकाश की कुछ घटनाओं की खोज से आरंभ होता है। 1908 ई. में मालुस (Malus) ने घूर्णन द्वारा प्रकाश के ध्रुवण की खोज की और तीन वर्ष बाद आरागो (Arago) ने [[स्फटिक]] के प्रकाश-सक्रिय होने का पता लगाया। 1815 ई. में विओ (Biot) ने पता लगाया कि ठोसों के साथ-साथ [[द्रव]] और [[गैस|गैसें]] भी विलयन में प्रकाशसक्रिय होती हैं।
 
'''विशिष्ट घूर्णन''' - किसी प्रकाशत: सक्रिय पदार्थ का विशिष्ट घूर्णन समीकरण के द्वारा दर्शाया जाता है, जिसे विशिष्ट घूर्णन , प्रकाश की तरंग लंबाई '''l''' तथा '''t''' डिग्री ताप के लिए है और '''a''' प्रकाश के घूर्णन का अंश (degree) है, जो 1 सेंटी मीटर लंबी नली से होकर प्रकाश के जाने से प्राप्त हुआ तथा '''d''' नली में भरी हुई प्रकाशसक्रिय वस्तु की प्रति घन सेंमी. सांद्रता है। दाहिनी ओर के घूर्णन को धनात्मक (+) तथा बाईं ओर के घूर्णन को ऋणात्मक (-) कहते हैं। विशिष्ट घूर्णन प्रकाश तरंग, लंबाई, ताप, विलायक तथा सांद्रण पर निर्भर है। कभी-कभी इनके परिवर्तन के कारण घूर्णन की दिशा ही विपरीत हो जाती है।
 
[[शेले]] (Scheele) ने 1768 ई. में [[टार्टरिक अम्ल]] अंगूरों के टार्टर से प्राप्त किया तथा 1819 ई. में केस्टनर (Kastner) ने उसी संघटन का एक अम्ल उपजात के रूप में पाया और इसका नाम रेसिमिक (Racemic) अम्ल रखा। 1838 ई. में बिओ ने पता लगाया कि टार्टरिक अम्ल प्रकाशत: सक्रिय है और रेसिमिक अम्ल प्रकाशत: निष्क्रिय है। ध्रुवित प्रकाश तथा प्रकाशत: सक्रियता की खोज के उपरांत विन्यासरसायन के सिद्धांतों में उल्लेखनीय प्रगति [[पैस्टर]] (Pasteur) के द्वारा हुई। पैस्टर ने पता लगाया कि टार्टरिक और रेसिमिक अम्लों का संघटन तथा उनका संरचनासूत्र HOOC-CHOH-CHOH-COOH एक है, पर उनके भौतिक गुणों में भिन्नता है। रेसिमिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल की अपेक्षा पानी में कम विलेय है तथा टार्टरिक अम्ल और उसके लवण प्रकाशत: सक्रिय हैं, पर रेसिमिक अम्ल और उसके लवण प्रकाशत: निष्क्रिय हैं। पैस्टर की सबसे विख्यात खोज रेसिमिक अम्ल के सोडियम और अमोनियम लवण पर हुई। यह [[लवण]] जब जल से 22 डिग्री पर [[क्रिस्टलन|क्रिस्टलीकृत]] होता है, तो इसके क्रिस्टन दूसरे रेसीमेट से भिन्न होते हैं और इनकी अर्धफलकीय फलिकाएँ (hemihedral facets) होती हैं। दो प्रकार के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं, एक तो दक्षिणवर्त सोडियम अमोनियम टार्टरेट की भाँति सर्वसम और दूसरी तरफ के क्रिस्टल, जिनकी अर्धफलकता (hemihedrism) इनके विपरीत होती है। इस दूसरे प्रकार के क्रिस्टल को दर्पण प्रतिबिंब (मिरर इमेज) की संज्ञा दी गई। इनको जब मिश्रण से पृथक् किया गया तो इसका जलीय विलयन वामावर्त (laevorotatory) था। इससे प्राप्त अम्ल का क्रिस्टल भी टार्टरिक अम्ल के क्रिस्टल के दर्पण प्रतिबिंब के रूप में था और विलयन भी वामावर्त था। इसलिए इस अम्ल को टार्टरिक अम्ल का दूसरा रूप समझा गया। इनके क्रिस्टल असममित होते हैं :
 
==प्रकाशीय समावयवता (Optical Isomerism)==
यह पाया गया कि केवल वे ही क्रिस्टल तथा अणु, जिनके दर्पण प्रतिबिंब अध्यारोपित (superimpose) नहीं होते, प्रकाशत: सक्रिय होते हैं। ऐसी संरचना को असममित कहते हैं।
 
बहुत से पदार्थ ठोस अवस्था में ही प्रकाशत: सक्रिय होते हैं, जैसे स्फटिक, सोडियम क्लोरेट आदि। सर्वप्रथम ज्ञात, प्रकाशत: सक्रिय पदार्थ स्फटिक ही है, जिसके क्रिस्टल दो प्रकार के, एक दक्षिणवर्त और दूसरा वामावर्त, होते हैं। ये दोनों क्रिस्टल एक दूसरे के दर्पण प्रतिबिंब हैं और अध्यारोपित नहीं होते। क्रिस्टल के ऐसे जोड़ों को प्रतिबिंब रूप (enantiomorphs) कहते हैं। स्फटिक के गलाने पर इसकी सक्रियता लुप्त हो जाती है। इसलिए स्फटिक की प्रकाशत: सक्रियता उसके असममित क्रिस्टल संरचना के कारण होती है। इस वर्ग के पदार्थ प्रकाशत: सक्रिय तभी तक रहते हैं जब तक वे ठोस रूप में होते हैं, और गलने पर, वाष्पीकरण से तथा विलयन में इनकी सक्रियता नष्ट हो जाती है।
 
बहुत से यौगिक ठोस, गलन, गैसीय या विलयन अवस्था में भी प्रकाशत: सक्रिय होते हैं, जैसे ग्लूकोज़, टार्टरिक अम्ल आदि। इनकी सक्रियता यौगिक की अममित आणविक संरचना के कारण होती है। इस अणु और उसके दर्पण प्रतिबिंब को प्रतिबिंब रूप, प्रकाशीय प्रतिविन्यासी (optical antipodes) या प्रकाशीय समावयवी कहते हैं।
 
==प्रतिबिंब रूपों के गुण==
केवल दो बातों को छोड़कर, ये रूप भौतिक गुणों में एक से होते हैं। एक ही ध्रुवित प्रकाश के साथ बराबर और विपरीत घूर्णन देते हैं और दूसरे दक्षिणावर्त तथा वामावर्त वृत्तीय ध्रुवित प्रकाश के साथ इनका अवशोषण गुणांक भिन्न होता है। प्रतिबिंब रूपों के रासायनिक गुण एक से होते हैं पर किसी दूसरे प्रकाशत: सक्रिय पदार्थ के साथ की अभिक्रिया में प्राय: अंतर होता है। शरीरक्रियात्मक सक्रियता (physiological activity) में भी अंतर हो सकता है, जैसे (+) हिस्टीडीन (histidine) मीठा होता है और (-) हिस्टीडीन स्वादहीन; (-) निकोटिन (+) निकोटिन से अधिक विषैला होता है।
 
==चतुष्फलकीय कार्बन परमाणु (Tetrahedral Carbon Atom)==
सन् 1874 में वांट हॉफ और ले बल (Van't Hoff and Le Bel) ने कार्बनिक यौगिकों की प्रकाशत: समावयवता के अस्तित्व का समाधान किया। [[वांट हाफ]] ने विचार किया कि कार्बन की चारों संयोजकता किसी [[समचतुष्फलक]] (regular tetrahedron) के चारों सिरों की तरफ निर्देशित है और [[कार्बन]] परमाणु उस चतुष्फलक के मध्य में स्थित है। इस सिद्धांत के अनुसार [[मेथेन]] के चारों हाइड्रोजन परमाणु समान होंगे, जिसे भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा सिद्ध भी किया गया। इसके पूर्व 1858 ई. में यह समझा जाता था कि कार्बन की चारों संयोजकताएँ एक समतल में हैं और कार्बन परमाणु इस वर्ग के केंद्र पर है।
 
[[श्रेणी:रसायन विज्ञान]]