"मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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[[तमिल भाषा]] में मन्दिर को ''कोईल'' या ''कोविल'' (கோவில்) कहते हैं।
 
शिल्पशास्त्र के अनुसार भारतीय मंदिरों के प्रमुख अंग
 
भारतीय मंदिरों में मूल रूप से निम्नलिखित अवयय सम्मिलित रहते हैं:
 
गर्भगृह: यह शब्द मंदिरस्थापत्य से सम्बंधित है। यह मंदिर का वह भाग होता है जहा देवमूर्ति की स्थापना की जाती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार देवमंदिर के ब्रह्मसूत्र या उत्सेध की दिशा में नीचे से ऊपर की ओर उठते हुए कई भाग होते हैं। पहला जगती, दूसरा अधिष्ठान, तीसरा गर्भगृह, चौथा शिखर और अंत में शिखर के ऊपर आमलक और कलश।
 
मण्डप: भारतीय स्थापत्यकला के सन्दर्भ में, स्तम्भों पर खड़े बाहरी हाल को मण्डप कहते हैं जिसमें लोग विभिन्न प्रकार के क्रियाकर्म करते हैं। जब एक ही मंदिर में एक से अधिक मण्डप होते हैं तो उनके नाम भी अलग-अलग होते हैं: अर्थ मण्डपम, अस्थान मण्डपम, कल्याण मण्डपम्, महामण्डपम, नन्दि मण्डपम, रङग मण्डपम, मेघनाथ मण्डपम और नमस्कार मण्डपम।
 
शिखर: इसका शाब्दिक अर्थ 'पर्वत की चोटी' होता है किन्तु भारतीय वास्तुशास्त्र में उत्तर भारतीय मंदिरों के गर्भगृह के ऊपर पिरामिड आकार की संरचना को शिखर कहते हैं।
 
विमानम्: दक्षिण भारतीय मंदिरों के गर्भगृह के ऊपर पिरामिड आकार की संरचना को 'विमानम्' कहते हैं।
 
आमलक: मंदिर शिखर के शीर्ष पर पत्थर की संरचना को आमलक बोला जाता है।
 
कलश: इसका का शाब्दिक अर्थ है - घड़ा। हिन्दू धर्म में सभी कर्मकांडों के समय इसका उपयोग किया जाता है। एक कांस्य, ताम्र, रजत या स्वर्ण पात्र के मुख पर श्रीफल (नारियल) रखा होता है। यह अमलाका के ऊपर मंदिर का सबसे ऊंचा बिंदु होता है।
 
अंतराल (vestibule): मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच के भाग को अंतराल बोला जाता हैं।
 
जगती: यह शब्द मंच के लिए उपयोग किया जाता है जहां लोग प्रार्थना के लिए बैठते हैं।
 
वाहन: यह प्रमुख देवता का आसन या वहां होता है और इसे पवित्रम स्थल के ठीक सामने स्थापित किया जाता है।भारत के विभिन्न हिस्सों में मंदिर निर्माण की विशिष्ट वास्तुकला शैली भौगोलिक, जलवायु, जातीय, नस्लीय, ऐतिहासिक और भाषाई विविधता का परिणाम है तथा विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध कच्चे माल के प्रकार का निर्माण तकनीक, नक्काशी और समग्र मंदिर आकृति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
 
== मंदिरों की निर्माण ==