"गुरु हर राय": अवतरणों में अंतर

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| spouse = माता कृशन कौर
| children = बाबा राम राय और [[गुरु हर किशन|गुरु हरकिशन]]
}}
|जातीयता/नस्ल=राय सिख|religion=सिख धर्म}}
{{सिक्खी}}
{{प्रवेशद्वार|सिख धर्म}}
[[चित्र:Guru Har Rai - Mool Mantar.jpg|thumb|200px|स्वयं गुरु हरि राय की हस्तलीपि में लिखा हुआ [[मूल मंत्र]]|right]]
'''हर राय''' या '''गुरू हर राय''' ({{lang-pa|ਗੁਰੂ ਹਰਿਰਾਇ}}) [[सिख|सिखों]] के सातवें गुरु थे। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे। उनका जन्म सन् १६३० ई० में कीरतपुर [[रोपड़]] में हुआ था। गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने मृत्यु से पहले, अपने पोते हरराय जी को १४ वर्ष की छोटी आयु में ३ मार्च १६४४ को 'सप्तम्‌ नानक' के रूप में घोषित किया था। गुरू हरराय साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी एवं माता निहाल कौर जी के पुत्र थे। गुरू हरराय साहिब जी का विवाह माता किशन कौर जी, जो कि अनूप शहर ([[बुलन्दशहर]]), उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री थी, हर सूदी ३, सम्वत १६९७ को हुआ। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री रामराय जीवडवाल और श्री हरकिशन साहिब जी (गुरू) थे।
 
गुरू हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरू हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया। उन्होंने सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचारित किए। वे एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे। अपने राष्ट्र केन्द्रित विचारों के कारण मुगल [[औरंगजेब]] को परेशानी हो रही थी। औरंगजेब का आरोप था कि गुरू हरराय साहिब जी ने [[दारा शिकोह]] ([[शाह जहाँ|शाहजहां]] के सबसे बड़े पुत्र) की सहायता की है। दारा शिकोह [[संस्कृत]] भाषा के विद्वान थे। और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था।