"चाणक्य": अवतरणों में अंतर

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कुछ विद्वानों के अनुसार कौटिल्य का जन्म [[पंजाब क्षेत्र|पंजाब]] के 'चणक' क्षेत्र में हुआ था अर्थात आज का चंडीगढ, जबकि कुछ विद्वान मानते हैं कि उनका जन्म दक्षिण भारत में हुआ था। कई विद्वानों का यह मत है कि वह [[कांचीपुरम]] के रहने वाले द्रविण ब्राह्मण अर्थात दक्षिण भारतीय निषाद थे। वह जीविकोपार्जन की खोज में उत्तर भारत आया थे। कुछ विद्वानों के मतानुसार [[केरल]] भी उनका जन्म स्थान बताया जाता है। इस संबंध में उनके द्वारा चरणी नदी का उल्लेख इस बात के प्रमाण के रूप में दिया जाता है। कुछ सन्दर्भों में यह उल्लेख मिलता है कि केरल निवासी चाणक्य [[वाराणसी]] आया था, जहाँ उसकी पुत्री खो गयी। वह फिर केरल वापस नहीं लौटा और मगध में आकर बस गया। इस प्रकार के विचार रखने वाले विद्वान उन्हे केरल के निषाद कुतुल्लूर नामपुत्री वंश का वंशज मानते हैं। कई विद्वानों ने उन्हे मगध का ही मूल निवासी माना है। कुछ बौद्ध साहित्यों ने उन्हे तक्षशिला का निवासी बताया है। कौटिल्य के जन्मस्थान के संबंध में अत्यधिक मतभेद रहने के कारण निश्चित रूप से यह कहना कि उनका जन्म स्थान कहाँ था, कठिन है, परंतु कई सन्दर्भों के आधार पर तक्षशिला को उनका जन्म स्थान मानना ठीक होगा।
 
वी. के. सुब्रमण्यम ने कहा है कि कई सन्दर्भों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि [[सिकंदर|सिकन्दर]] को अपने आक्रमण के अभियान में युवा कौटिल्य से भेंट हुई थी। चूँकि अलेक्जेंडर का आक्रमण अधिकतर तक्षशिला क्षेत्र में हुआ था, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि कौटिल्य का जन्म स्थान तक्षशिला क्षेत्र में ही रहा होगा। कौटिल्य के पिता का नाम चणक था। वह एक गरीब द्रविड़ ब्राह्मण थे और किसी तरह अपना गुजर-बसर करता थे। अतः स्पष्ट है कि कौटिल्य का बचपन गरीबी और दिक्कतों में गुजरा होगा। कौटिल्य की शिक्षा-दीक्षा के संबंध में कहीं कुछ विशेष जिक्र नहीं मिलता है, परन्तु उनकी बुद्धि की प्रखरता और उनकी विद्वता उनके विचारों से परिलक्षित होती है। वह कुरूप होते हुए भी शारीरिक रूप से बलिष्ठ थे। उनकीउनके पुस्तकग्रंथ 'अर्थशास्त्र' के अवलोकन से उनकी प्रतिभा, बहुआयामी व्यक्तित्व और दूरदर्शिता का पूर्ण आभास होता है।
 
कौटिल्य के बारे में यह कहा जाता है कि वह बड़े ही स्वाभिमानी एवं राष्ट्रप्रेमी व्यक्ति थे। एक किंवदंती के अनुसार एक बार मगध के राजा महानंद ने श्राद्ध के अवसर पर कौटिल्य को अपमानित किया था, जबकि तथ्यों से उजागर होता है कि धनानंद की प्रजा विरोधी नीतियों के ब्राह्मण चणक, जो कि विष्णुगुप्त (चाणक्य) के पिता थे, द्वारा विरोध करने पर उन्हें कारगर में बंदी बनाकर उनके, परिवार को देश निकाला दे दिया गया था. तथापि राष्ट्र हित में चाणक्य ने धनानंद से सीमान्त देशों के लिए सैनिक सहायता के लिए विनती की, जिससे बाहरी आततायी भारतीय जन का अशुभ न कर सकें। परन्तु मद में अंधे धनानंद ने उनका अपमान कर उन्हें राजमहल से निकाल दिया। कौटिल्य ने क्रोध के वशीभूत होकर अपनी शिखा खोलकर यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह नंदवंश का नाश नहीं कर देंंगे तब तक वह अपनी शिखा नहीं बाँधेंगे। कौटिल्य के व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का यह भी एक बड़ा कारण था। नंदवंश के विनाश के बाद उन्होने चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठने में हर संभव सहायता की। चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा गद्दी पर आसीन होने के बाद उसे पराक्रमी बनाने और मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से उन्होने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश किया। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के मंत्री भी बने।