"नंद वंश": अवतरणों में अंतर

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(1) गंगन पाल, (2) पंडुक, (3) पंडुगति, (4) भूतपाल, (5) राष्ट्रपाल, (6) गोविषाणक, (7) दशसिद्धक, (8) कैवर्त और (9) धननन्द।
 
कुशवंशी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य(JAAT) नन्द वंश के धननन्द का वध कर राजा हुए जिनके डर से सिकन्दर भी भाग गया था।
 
पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित महापद्म के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किंतु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नहीं। पुराणों में उन सबका राज्यकाल 100 वर्षों तक बताया गया है - 88 वर्षों तक महापद्मनंद का और 12 वर्षों तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षों तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षों तक ही राज्य करें, यह बुद्धिग्राह्य नहीं प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदों का राज्यकाल 40 वर्षों का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते हैं। तदनुसार नवनंदों ने लगभग 364 ई. पू. से 324 ई. पू. तक शासन किया। इतना निश्चित है कि उनमें अंतिम राजा अग्रमस् (औग्रसैन्य (?) अर्थात् उग्रसेन का पुत्र) सिकंदर के आक्रमण के समय मगधा (प्रसाई-प्राची) का सम्राट् था, जिसकी विशाल और शक्तिशाली सेनाओं के भय से यूनानी सिपाहियों ने पोरस से हुए युद्ध के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। "महावंशटीका" से ज्ञात होता है कि अंतिम नंद कठोर शासक तथा लोभी और कृपण स्वभाव का व्यक्ति था। संभवत: इस लोभी प्रकृति के कारण ही उसे धननंद कहा गया। उसने चाणक्य का अपमान भी किया था। इसकी पुष्टि मुद्राराक्षस नाटक से होती है, जिससे ज्ञात होता है कि चाणक्य अपने पद से हटा दिया गया था। अपमानित होकर उसने नंद साम्राज्य के उन्मूलन की शपथ ली और कुशवंशी चंद्रगुप्त मौर्य के सहयोग से उसे उस कार्य में सफलता मिली। उन दोनों ने उस कार्य के लिए पंजाब के क्षेत्रों से एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें संभवत: कुछ विदेशी तत्व और लुटेरे व्यक्ति भी शामिल थे। यह भी ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने धननंद को उखाड़ फेंकने में पर्वतक (पोरस) से भी संधि की थी। उसने मगध पर दो आक्रमण किए, यह सही प्रतीत होता है, परंतु "दिव्यावदान" की यह अनुश्रुति कि पहले उसने सीधे मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर ही धावा बोल दिया तथा असफल होकर उसे और चाणक्य को अपने प्राण बचाने के लिए वेष बनाकर भागना पड़ा, सही नहीं प्रतीत होती। उन दोनों के बीच संभवत: 324 ई. पू. में युद्ध हुआ, जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त ने मौर्यवंश का प्रारंभ किया।