"वेदान्त दर्शन": अवतरणों में अंतर

नूतन अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन को जोडा गया
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==स्वामिनारायण वेदान्त (अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन)==
भगवान श्री स्वामिनारायण '''('''1781 – 1830 ई.) ने प्रस्थानत्रयी का आधार लेकर इस अक्षरपुरुषोत्तम तत्त्वदर्शन का उद्गाटन किया है। इसमें पांच अनादि तत्त्वों का स्वीकार किया गया है - जीव, ईश्वर, माया, अक्षरब्रह्म और परब्रह्म। जिनमें से अक्षरब्रह्म और परब्रह्म ये दोनों तत्त्व नित्य माया से पर चैतन्य तत्त्व हैं। जीव तथा ईश्वर माया से बद्ध हैं। जीवों तथा ईश्वरों द्वारा अक्षरब्रह्मस्वरूप गुरु के सांन्निध्य में साधना करने पर मुक्ति होती है। इस दर्शन में भगवान स्वामिनारायणजी को परब्रह्म माना गया है और उनका धाम अक्षरधाम माना गया है। २१वी शताब्दी में महामहोपाध्याय साधु भद्रेशदासजी ने भगवान स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन का प्रतिपादन करते हुए प्रस्थानत्रयी पर प्रमाणिक भाष्यों की रचना की है। इन भाष्यों की प्रामाणिकता एवं इस दर्शन की नूतनता, मौलिकता को काशी और तिरुपिततिरुपति समेत भारतवर्ष के अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने समर्थन दिया है। <ref>{{Cite web|url=https://www.baps.org/News/2017/Swaminarayansiddhantasudha-Acclamation-by-the-⁠⁠⁠Śrī-Kāśī-Vidvat-Parisad-11826.aspx|title=‘Swaminarayansiddhantasudha’ Acclamation by the ⁠⁠⁠Śrī Kāśī Vidvat Parisad|website=BAPS|language=en-US|access-date=2022-05-04}}</ref><ref>{{Cite web|url=https://www.baps.org/News/2021/South-Indian-Scholars-Recognize-the-Akshar-Purushottam-Darshan-as-a-Distinct-Vedic-Sanatan-Darshan-19608.aspx|title=South Indian Scholars Recognize the Akshar-Purushottam Darshan as a Distinct Vedic Sanatan Darshan|website=BAPS|language=en-US|access-date=2022-05-04}}</ref> अतः समस्त भारत में इस दर्शन को सप्तम वेदांत दर्शन के रूप में सभीने स्वीकृत किया है।
 
== सन्दर्भ ग्रंथ ==