"शनि (ज्योतिष)": अवतरणों में अंतर
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→पौराणिक संदर्भ: श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल मथुरा प्रयाग घाट स्थित पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीप... टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन Disambiguation links |
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== पौराणिक संदर्भ ==
[[शनि]] के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं।[[माता]] के [[छल]] के कारण पिता ने उसे [[शाप]] दिया.पिता अर्थात [[सूर्य]] ने कहा,"आप क्रूरतापूर्ण द्रिष्टि देखने वाले [[मंदगामी]] ग्रह हो जाये".यह भी आख्यान मिलता है कि शनि के [[प्रकोप]] से ही अपने राज्य को घोर [[दुर्भिक्ष]] से बचाने के लिये [[राजा दशरथ]] उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका [[पुरुषार्थ]] देख कर [[शनि]] ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा.[[राजा दशरथ]] ने विधिवत [[स्तुति]] कर उसे प्रसन्न किया।[[पद्म पुराण]] में इस [[प्रसंग]] का सविस्तार वर्णन है।[[ब्रह्मवैवर्त पुराण]] में [[शनि]] ने जगत जननी [[पार्वती]] को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ.एक बार जब विष्णुप्रिया [[लक्ष्मी]] ने [[शनि]] से पूंछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो, क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं, तो शनि महाराज ने उत्तर दिया,"मातेश्वरी, उसमे मेरा कोई दोष नही है, परमपिता [[परमात्मा]] ने मुझे तीनो लोकों का [[न्यायाधीश]] नियुक्त किया हुआ है, इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है, उसे दंड देना मेरा काम है".एक आख्यान और मिलता है, कि किस प्रकार से [[ऋषि अगस्त]] ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी, तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी। जिस किसी ने भी अन्याय किया, उनको ही उन्होने [[दंड]] दिया, चाहे वह भगवान [[शिव]] की अर्धांगिनी [[सती]] रही हों, जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की [[यज्ञ]] में [[हवन कुंड]] मे जल कर मरने के लिये [[शनि]] देव ने विवश कर दिया, अथवा [[राजा हरिश्चन्द्र]] रहे हों, जिनके दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और,[[श्मशान]] की रखवाली तक करनी पडी, या [[राजा नल]] और [[दमयन्ती]] को ही ले लीजिये, जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा, और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं, फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा, वाचा, कर्मणा, पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में, उसे भुगतना तो पडेगा ही.
[[मत्स्य पुराण]] में [[महात्मा]] [[शनि]] [[देव]] का शरीर [[इन्द्र कांति]] की [[नीलमणि]] जैसी है, वे [[गिद्ध]] पर सवार है, हाथ मे [[धनुष बाण]] है एक हाथ से [[वर मुद्रा]] भी है,[[शनि]] [[देव]] का [[विकराल]] रूप [[भयावह]] भी है।[[शनि]] पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं।
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