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| name =शिव दयाल सिंह
| image =[[File:Swami Ji Maharaj.jpg|170px]]
| religion = उत्तर भारत
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'''शिव दयाल सिंह''' (1861 - 1878) (जो स्वामी जी के नाम से भी जाने जाते हैं) राधास्वामी मत की शिक्षाओं का प्रारंभ करने वाले पहले सत्गुरु थे. उनका पहला नाम सेठ शिव दयाल सिंह था. उनका जन्म 25 अगस्त, [[1818]] में [ [आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]] में [[जन्माष्टमी]] के दिन हुआ. पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने [[हिंदी]], [[उर्दू]], [[फारसी भाषा|फारसी]] और गुरमुखी सीखी. उन्होंने [[अरबी]] और [[संस्कृत]] भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया. उनके माता-पिता हाथरस, [[भारत]] के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे. <ref>[http://www.geocities.com/Athens/Academy/9563/chapter2.html#part7 तुलसी साहब और उनकी शिक्षाएँ]</ref> तुलसी साहब ने उन्हें नामदान दिया जब ये छह: वर्ष के थे. <ref name="radhasoamisatsang.org">[http://www.radhasoamisatsang.org/sm/sm_detail.htm Radhasoamisatsang.org: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ]</ref><ref>[http://www.angelfire.com/linux/radhasoami/sm/gallery_1.htm Angelfire.com: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ]</ref>
 
छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ. उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं. शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए. वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई. उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फारसी अध्यापक की नौकरी कर ली. उनकी आध्यात्मिक तलाश इतनी घनी थी कि सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी. वे अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए. <ref name="radhasoamisatsang.org"/><ref>[http://www.radhaswamidinod.org/lineage.htm Radhaswamidinod.org: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ]</ref>