"राजनीतिक दर्शन": अवतरणों में अंतर
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हम मानव गण सामाजिक प्राणियों के रूप में साथ-साथ समाज में रहते हैं, जिसमें हम संसाधनों, रोजगारों और पुरस्कारों में साझेदारी करते हैं। साथ ही हम व्यक्ति भी हैं, जिस हैसियत में हमें कुछ बुनियादी मानवाधिकारों की जरूरत है। इसलिए मेल-जोल तथा खुशहाली को अधिकतम सीमा तक ले जाने के खातिर और व्यक्तिगत आत्म-सिद्धि के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ सुलभ कराने के निमित्त राज्य तथा समाज के संगठन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण हो जाती है। फलतः मानव समाजों की एकता और अखंडता का या समाज की सामूहिक आवश्यकताओं की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए राजनीतिक सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वह समस्याओं का अध्ययन करने और उस प्रक्रिया में उनका समाधान ढूँढ़ने की कोशिश करता है। राजनीतिक सिद्धान्त की प्रासंगिकता राज्य के स्वरूप और प्रयोजन के प्रति, राजनीतिक सत्ता के आधार और सरकार के सबसे श्रेयस्कर रूप के संबंध में और राज्य तथा व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों के संदर्भ में उन दोनों के बीच के संबंधों के बारे में विभिन्न दृष्टिकोणों का विकास करने में निहित होती है। इसके अतिरिक्त, राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक राज्य की नैतिक गुणवत्ता की परख के लिए नैतिक मापदंड स्थापित करने तथा वैकल्पिक राजनीतिक प्रबंधन और व्यवहार सुझाने का भी प्रयत्न करता है। संक्षेप में कहें तो राजनीतिक सिद्धान्त की प्रासंगिकता निम्नलिखित बातों में निहित हैः
* राजनीतिक संघटना की व्याख्या और वर्णन करना
* किसी समुदाय के लिए श्रेयस्कर राजनीतिक लक्ष्यों और कार्यवाहियों का चुनाव करने में सहायता देना,
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