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[[जय सिंह द्वितीय|सवाई जयसिंह]] द्वारा निर्मित [[जंतर मंतर|जन्तर-मन्तर]] वास्तव में एक खुली हुई मापन-यंत्र-शाला है। जयसिंह द्वारा निर्मित जन्तर-मन्तर में विद्यमान यन्त्र ये हैं- सम्राट यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र, राशिवलय यन्त्र, राम यन्त्र, चक्र यन्त्र, दिगंश यन्त्र, कपालि यन्त्र, दक्षिणोभित्ति यन्त्र, क्रान्ति यन्त्र, उन्नतांश यन्त्र, नारीवलय यन्त्र, शस्थान्न्श यन्त्र, तथा यन्त्रराज।
 
=== खगोलीय मापयंत्रण से सम्बन्धित संस्कृत पाण्डुलिपियाँ ===
वर्तमान समय तक प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में खगोलिकी के लिये प्रयुक्त सबसे प्राचीन मापनयन्त्र '''शंकु''' ((gnomon) और '''घटिका''' (clepsydra) हैं। शंकु का उल्लेख [[शुल्बसूत्र|शुल्बसूत्रों]] में हुआ है जबकि घटिका का उल्लेख [[वेदाङ्ग ज्योतिष]] में हुआ है। [[आर्यभट]] ने खगोलीय गोले के एक घूर्णन करने वाले मॉडेल का वर्णन किया है। आर्यभट के बाद [[वराहमिहिर]], [[ब्रह्मगुप्त]], [[लल्ल]], [[श्रीपति]] और [[भास्कर द्वितीय]] ने अनेक मापयंत्रों का वर्णन किया। भास्कर द्वितीय के पश्चात कुछ ऐसे संस्कृत ग्रन्थों की रचना हुई जिनका विषय मुख्यतः मापयंत्रण ही था। इस प्रकार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ [[यन्त्रराज]] है जिसकी रचना १३७० ई में [[महेन्द्र सूरि]] ने की थी। [[उन्नतांशमापी]] (astrolabe) का वर्णन करने वाला यह प्रथम संस्कृत ग्रन्थ भी है। महेन्द्र सूरि के पश्चात [[पद्मनाभ]], [[चक्रधर]], [[गणेश दैवज्ञ]], आदि ने भी मापनयन्त्रों से सम्बन्धित ग्रन्थों की रचना की। <ref>[https://www.cambridge.org/core/services/aop-cambridge-core/content/view/996966B676305EA2E99FD42D64C94C9B/S0252921100106037a.pdf/div-class-title-a-note-on-some-sanskrit-manuscripts-on-astronomical-instruments-div.pdf A NOTE ON SOME SANSKRIT MANUSCRIPTS ON ASTRONOMICAL INSTRUMENTS] by Yukio Ohashi</ref>