"जयपाल सिंह मुंडा": अवतरणों में अंतर

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उन्होंने बिहार के शिक्षा जगत में योगदान देने के लिए तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को इस संबंध में पत्र लिखा. परंतु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. 1938 की आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया. इसी दौरे के दौरान आदिवासियों की खराब हालत देखकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया.<ref>{{cite book | title=मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा| edition=2015| author=Ashwini Kumar Pankaj| year=2015|publisher=Vikalp Prakashan, Delhi| isbn=978-938269531-8}}</ref>
 
1938 जनवरी में उन्होंने [[आदिवासी महासभा]] की अध्यक्षता ग्रहण की जिसने [[बिहार]] से इतर एक अलग [[झारखंड]] राज्य की स्थापना की मांग की। इसके बाद जयपाल सिंह देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए। उनके जीवन का सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने [[संविधान सभा]] में बेहद वाकपटुता से देश की आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी। संविधान सभा में 'अनुसूचित जनजाति' की जगह आदिवासियों को 'मूलवासी आदिवासी' करने की बात कही।
 
== इन्हें भी देखें ==