"गुरु-शिष्य परम्परा": अवतरणों में अंतर

बेहतरीन तंदरुस्ती के लिए एलोपैथिक या अंग्रेजी चिकित्सा से मुख मोड़ना ही पड़ेगा अन्यथा शरीर जहरीला और तेजाब युक्त हो जायेगा। फिर अपनाएं प्राचीन और 'आयुर्वेदिक जीवनशैली amrutam
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लाखों वर्ष घरेलू परंपराओं को आजमाकर दंतरोग, कंठ रोग, गले की प्रेषणि, पेट की खराबी को स्थाई रूप से ठीक किया जा सकता है।
अमृतम पत्रिका
 
बेहतरीन तंदरुस्ती के लिए एलोपैथिक या अंग्रेजी चिकित्सा से मुख मोड़ना ही पड़ेगा अन्यथा शरीर जहरीला और तेजाब युक्त हो जायेगा।
फिर अपनाएं प्राचीन और 'आयुर्वेदिक जीवनशैली
 
हमारी जीवनशैली व्यस्त होने के साथ-साथ अस्वस्थ भी है। समय और मेहनत बचाने एवम शीघ्र ही स्वस्थ्य होने की लालसा में अधिकांश लोग आधुनिक रसायनिक उत्पादों पर पूरी तरह से आश्रित हो चुके हैं। जबकि अधिक से अधिक केमिकल रहित वस्तुओं का इस्तेमाल करके इस निर्भरता को समाप्त किया जा सकता है।
भारत की महान प्राचीन और आयुर्वेदिक आदतों को दिनचर्या का हिस्सा बनाकर अपनी जीवनशैली और स्वास्थ्य, दोनों को बेहतर बना सकते हैं।
 
देश की पुरानी परंपराओं तथा आदतों को दोबारा अपनाएं....
 
तिल या सरसों के तेल से कुल्ला...
यह प्राचीन आयुर्वेदिक विधि है जो मुंह के मसूढे, दांतों की सेहत के लिए लाभकारी है।
इससे मुंह की कई बीमारियां दूर होती हैं और मसूड़ों में मज़बूती बनी रहती है।
इसे सुबह खाली पेट करना फ़ायदेमंद होता है।
 
तिल या सरसों के तेल से प्रतिदिन कुल्ला करने से मुंह में मौजूद हानिकारक कीटाणु अच्छी तरह से साफ़ हो जाते हैं। साथ ही मुंह की दुर्गंध, मसूड़ों का सड़ना, कैविटी की समस्या, मसूड़ों की सूजन व दांत दर्द जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
 
कुल्ला करने के लिए एक बड़ा चम्मच तिल या सरसों का शुद्ध तेल लें और एक से पांच मिनट तक इसे मुंह में चारों तरफ घुमाएं।
 
एक मिनट बाद तेल थूक दें। इसे निगले नहीं। फिर गुनगुने पानी से कुल्ला कर लें।
 
दांतों में दर्द या टीस हो तो amrutam Dentkey Manjan तर्जनी उंगली से दांतों में लगाकर २ से ३ मिनिट बाद कुल्ला कर, ब्रश से साफ करें।
 
मात्र सात दिनों के प्रयोग से दंत रोग, कंठ विकार, गले की तकलीफ, कफ की समस्या का स्थाई हल हो जाएगा और आंखों की रोशनी तेज होगी।
 
दांत में कोई असाध्य रोग है, जो अक्सर पेट की खराबी के कारण होते हैं। इनसे राहत के लिए amrutam Dentkey Malt तीन महीने टीके दूध के साथ सेवन करें।
 
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[[भारत की संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] में प्राचीन काल से चली आ रही 'गुरु-शिष्य परम्परा' को '''परम्परा''' कहते हैं। यह हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों में समान रूप से पायी जाती है।