"वैशेषिक दर्शन": अवतरणों में अंतर
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इस दर्शन के मूलभूत सिद्धान्त निम्न हैं –<ref>आचार्य उदयवीर शास्त्री, 'वैशेषिकदर्शनम् ' में</ref>
: '''[[परमाणु]]''' – जगत का मूल उपादान कारण परमाणु माना है और परमाणुओं के संयोग से अनेक वस्तुएँ बनती हैं।
: '''[[अनेकात्मवाद]]''' – यह दर्शन जीवात्माओं को अनेक मानता है तथा कर्मफल भोग के लिए अलग-अलग शरीर मानता है।
: '''[[असत्कार्यवाद]]''' – इस दर्शन का सिद्धान्त है कि कारण से कार्य होता है। कारण नित्य हैं, और कार्य अनित्य।
: '''
इस दर्शन में [[भूकम्प]] आना, [[वर्षा]] होना, [[चुम्बक]] में गति, [[गुरुत्वाकर्षण]] विज्ञान, [[ध्वनि]] तरंगे आदि के विषय में विवेचना प्रस्तुत की गई है।
[[वैशेषिकसूत्र]] में दस अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक और ३७० सूत्र हैं। पठन-पाठन में विशेष प्रचलित न होने के कारण वैशेषिक सूत्रों में अनेक पाठभेद हैं तथा 'त्रुटियाँ' भी पर्याप्त हैं। [[मीमांसासूत्र|मीमांसासूत्रों]] की तरह इसके कुछ सूत्रों में पुनरुक्तियाँ हैं - जैसे "सामान्यविशेषाभावेच" (4 बार) "सामान्यतोदृष्टाच्चा विशेष:" (2 बार), "तत्त्वं भावेन" (4 बार), "द्रव्यत्वनित्यत्वे वायुना व्यख्याते" (3 बार), "संदिग्धस्तूपचार:" (2 बार)।
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(1) प्रत्येक नित्य द्रव्य को परस्पर पृथक् करने के लिए तथा प्रत्येक तत्व के वास्तविक स्वरूप को पृथक्-पृथक् जानने के लिए इन्होंने एक "विशेष" नाम का पदार्थ माना है ;
(2) "द्वित्व", "पाकजोत्पत्ति" एवं "विभागज विभाग" इन तीन बातों में इनका अपना विशेष मत है जिसमें ये दृढ़ हैं। अभिप्राय यह है कि वैशेषिक दर्शन व्यावहारिक तत्वों का विचार करने में संलग्न रहने पर भी स्थूल दृष्टि से सर्वथा
== वैशेषिक दर्शन के मुख्य ग्रंथ ==
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* पदार्थधर्मसंग्रह की टीका '''व्योमवती''' (व्योमशिवाचार्य, 8 वीं सदी),
* पदार्थधर्मसंग्रह की अन्य टीकाएँ हैं- '''
* पदार्थधर्मसंग्रह पर आधारित चन्द्र के '''दशपदार्थशास्त्र''' का अब केवल [[चीनी भाषा|चीनी]] [[अनुवाद]] प्राप्य है।
* ११वीं शदी के आसपास रचित शिवादित्य की '''[[सप्तपदार्थी]]''' में न्याय तथा वैशेषिक का सम्मिश्रण है।
* कटन्दी, वृत्ति-उपस्कर (शंकर मिश्र 15 वीं सदी),
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