"रोहिलखंड": अवतरणों में अंतर

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रोहिलखंड(हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी भाषा) या रुहेलखण्ड(उर्दू मिक्स हिंदी, रूहेल उर्दू खंड हिंदी) रुहेलखंड(उर्दू) उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[1][2].
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| colspan="2" style="margin-left: inherit; background:#FFC0CB; text-align:center; font-size: medium;" |उत्तर भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र<br />'''रोहिलखंड'''
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| colspan="2" | <div style="position:relative; margin: 0 0 0 0; border-collapse: collapse; border="1" cellpadding="0">
[[चित्र:The mausoleum of Hafiz Rahmat Khan at Bareilly, 1814-15.jpg|250px|An old Painting of the dargah of roler of Rohilkhand, Sardar Hafiz Rahmat Khan]]</div>
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| '''स्थिति'''
| [[उत्तर प्रदेश]]
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| '''राज्य स्थापित:'''
| 1690
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| '''[[भाषा]]'''
| [[हिन्दी]], [[उर्दु]]
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| '''[[राजवंश]]'''
| [[पांचाल]] ([[महाभारत]] कालीन)<br />[[मुगल]] (1526-1736)<br />[[रोहिल्ला]] (1736-1858)
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| '''ऐतिहासिक [[राजधानी]]'''
| [[बरेली]], [[रामपुर]]
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| '''पृथक सूबे'''
| [[रामपुर]], [[बरेली]], [[पीलीभीत]], [[खूतर]], [[शाहजहाँपुर]]
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|}
 
'''रोहिलखंड या रुहेलखण्ड''' [[उत्तर प्रदेश]] के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।<ref>[http://encyclopedia.jrank.org/RHY_RON/ROHILKHAND.html Encyclopædia Britannica Eleventh Edition: Rohilkhand]</ref><ref>[http://www.1911encyclopedia.org/Rohilkhand Rohilkhand]{{1911}}</ref>.
रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक क्षत्रिय खाप रोहिला के नाम पर पड़ा। महाभारत में इसे रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान युक्त होने के कारण और द्रहयु के वंशजो द्रोही / रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।
 
रोहिलखंड [[गंगा]] की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर [[उत्तराखंड]] और [[नेपाल]] उत्तर में हैं। पूर्वी ओर [[अवध]] है। इसका नाम यहां की एक जनजाति रोहिल्ला के नाम पर पड़ा। [[महाभारत]] में इसे मध्य देश के नाम से जाना गया है।<ref>[http://www.britannica.com/eb/article-9083753/Rohilkhand Encyclopædia Britannica Online: Rohilkhand]</ref>.
तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।
 
रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।
 
रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)
 
रोहिला एक संघ था, भारत
 
के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।
 
रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं
 
वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है
 
रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
 
वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ
 
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
 
इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है।
 
रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे,
 
उनका प्रवर गोत्र काठी कठोड,कठेरिया था
 
इस कठेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सेनापति, सामंत थे
 
उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे
 
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
 
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपट/ गहलोत
 
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मूसले
 
6- कठेहरिय/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार
 
12 बारह रोहिले लोहे के कवच धारी सैनिक थे।
 
सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए
 
(वासुदेवशरण अगरवाल)
 
इतिहास कार
 
हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे
 
आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है
 
जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये
 
जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए
 
काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे
 
महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था।
 
 
 
ये कठेहरिया/ काठी (रोहिला क्षत्रियों की प्रमुख प्राचीन शाखा)निकुम्भ वंश के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए
 
नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे
 
सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया
 
राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया
 
परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए
 
क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची
 
रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया
 
चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो
 
पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया
 
मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था
 
निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी
 
राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये,लगभग ,2800राजपुतो ने नसीरुद्दीन के बीस हजार आक्रांताओं को काट डाला
 
निहत्थे होने के कारण राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए,
सूर्य वंशी क्षत्रिय सम्राट राजा रणवीर सिंह रोहिला अकेले पड़ गए उन्हे चंगेज के सेनिको ने चारो ओर से घेरे में ले लिया और उन पर टूट पड़े,रणवीर सिंह का युद्ध कौशल देख कर नसीरुद्दीन चकित रह गया वे निहत्थे ही आक्रांताओं से लोहा ले रहे थे किंतु साहस नही छोड़ा अद्भुत शौर्य संग्राम में
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ,
 
रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी
 
किले को मुसलमान घेर चुके थे।
 
रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह उर्फ सुजान सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ।
 
हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावाली में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी
 
कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में
 
जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था
 
राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान
 
 
रक्षाबंधन एक गोरव गाथा को समस्त राजपूत समाज इस बलिदान दिवस
को शौर्य दिवस के रूप में मनाता है,
तथा इस महान साहसी दिल्ली सल्तनत को धूल चटाने वाले क्षत्रिय सम्राट रणवीर सिंह रोहिला की जयंती 25अक्टूबर को प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारत का राजपूत समाज एक स्वाधीनता व स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाता है।
1253 -1254 ईसवी में दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर
 
यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है
 
रोहिला क्षत्रिय वास्तव में
 
विशुद्ध क्षत्रिय राजवंश है।
 
एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है।
 
इतिहास इस बात का साक्षी है
 
रोहिले क्षत्रियो ने आज तक
 
कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कौम पर जीते जी आंच नहीं आने दी।
 
800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है
 
विधर्मी का संघार किया है
 
शाका और * जौहर* किया है
 
परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।
 
रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु
 
इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*
 
रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
 
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
 
वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) वारेचा आदि प्रसिद्ध साहसी राज वंशो का शासन था ये सभी कठेहरिया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ
 
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
 
🤺🤺🤺
 
अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले
 
इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ
 
और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस
 
का उदय हुआ
 
चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए
 
इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला
 
द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है
 
भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट
 
ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही द्रोह ,रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया
 
रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )
 
यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही
 
यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था
 
इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे
 
इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया
 
कठ गणराज्य
 
क्षुद्रक गणराज्य
 
मालव गणराज्य
 
योद्धेय गणराज्य
 
अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
सौराष्ट्र /,
गुजरात में काठियावाड़,
 
पंचाल में कठेहर रोहिलखंड राज्य की स्थापना की।
 
पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धेय राज्य की स्थापना की(रोहिलखंड में रोहिला क्षत्रियों ने १७२०ईसवी तक शासन किया।अफगानों ने रोहिला राजा हरनंद का कत्ल करके१७२०ईसवी में खुद को रुहेला उर्दू में कहना आरंभ कर दिया और रुहेला सरदार,नवाब उसी अफगान ट्राइब्स के शासकों की एक कड़ी है को १८०२तक रही,तत्पश्चात अंग्रेजो ने रोहिलखंड,रुहेलखंड को ब्रिटिश राज में मिलाया)
 
ये सभी क्षत्रिय कठेरिया /रोहिला
 
कठेहरिया/रोहिले क्षत्रिय ,रोहिला राजपूत कहलाए।*रोहिलखंड राजपूताना आज भी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा भाग हैं और एक कमिश्नरी के रूप में विद्यमान है।
 
(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)
 
(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)
 
रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*
 
रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला ।
नौवी शताब्दी से विशेष युद्ध कला में प्रवीण बहुत से योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्रदत्त की गई ,836ईसवी का एक शिला लेख मंडोर के किले में लगा है तदनुसार विप्र ब्राह्मण राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार को उसके द्वारा वीरता से किले की रक्षा करने और युद्ध कौशल के कारण उसे रोहिलाद्वायंक की उपाधि मिली थी। प्रत्यक्ष शिलालेख विद्यमान है।अन्य ग्रंथों के अनुसार भी मध्यकाल में रोहिला उपाधि का प्रचलन हुवा,महाराजा पृथ्वी राज चौहान की सेना में एक सो रोहिला सेना नायक थे जिनके आधार पर अनेक योद्धाओं को रोहिला उपाधि प्राप्त हुई।समस्त उत्तर भारत में आज रोहिला राजपूत करो ड़ों की संख्या में विद्यमान है।
*संकलन एवम प्रस्तुति क्षत्रिय राजपूत वाटिका/ राजपूत वंशावली से सआभार*
 
== इतिहास ==
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== शासक ==
* 1719 – 15 सितम्बर 1748 [[अली मुहम्मद खान]] (1706–1748)
*प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक*
* 15 सितम्बर 1748 – 24 जुलाई 1793 [[फ़ैज़ुल्लाह खान]] (1734–1793) (१७५२ तक अफ़गानिस्तान में बंदी)
 
* 15 सितम्बर 1748 – 23 अप्रैल 1774 [[हाफ़िज़ रहमत खान रोहिल्ला]] (1708/09–1774)
*1. अंगार सैन -* गांधार (वैदिक काल)
* 24 जुलाई 1793 – 11 अगस्त 1793 [[मुहम्मद अली खान रोहिल्ला]] (1750–1794)
*2. अश्वकरण -* ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग)
* 11 अगस्त 1793 – 24 अक्टूबर 1794 [[गुलाम मुहम्मद खान]] (1763–1828)
*3. अजयराव -* स्यालकोट (सांकल दुर्ग) ईसा पूर्व 326
* 24 अक्टूबर 1794 – 5 जुलाई 1840 [[अहमद अली खान]] (1787–1840)
*4. प्रचेता -* मलेच्छ संहारक
* 24 अक्टूबर 1794 – 1811 [[नसरुल्लाम खान]] (died 1811)
*5. शाशिगुप्त -* साइरस के समकालीन
* 5 जुलाई 1840 – 1 अप्रैल 1855 [[मुहम्मद सायद खान]] (1786–1855)
*6. सुभाग सैन -* मौर्य साम्राज्य के समकालीन
* 1 अप्रैल 1855 – 21 अप्रैल 1865 [[मुहम्मद युसुफ़ खान]] (1816–1865)
*7. राजाराम शाह -* 909ईसवी रामपुर रोहिलखण्ड
* 21 अप्रैल 1865 – 23 मार्च 1887 [[मुहम्मद कल्ब खान]] (1834–1887)
*8. बीजराज -* रोहिलखण्ड
* 23 मार्च 1887 – 25 फ़रवरी 1889 [[मुहम्मद मुश्ताक अली खान]] (1856–1889)
*9. करण चन्द्र -* रोहिलखण्ड
* 25 फ़रवरी 1889 – 20 जून 1930 [[मुहम्मद हामिद अली खान]] (1875–1930)
*10. विग्रह राज -* रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है।
*25 फ़रवरी 1889 – 4 अप्रैल 1894 ... -
*11. सावन्त सिंह -* रोहिलखण्ड
* 20 जून 1930 – 15 अगस्त 1947 [[मुहम्मद रज़ा अली खान]] (1908–1966)
*12. जगमाल -* रोहिलखण्ड
*13. धिंगतराव -* रोहिलखण्ड
*14. गोंकुल सिंह -* रोहिलखण्ड
*15. महासहाय -* रोहिलखण्ड
*16. त्रिलोक चन्द -* रोहिलखण्ड
*17. रणवीर सिंह -* रोहिलखण्ड
*18. सुन्दर पाल -* रोहिलखण्ड
*19. नौरंग देव -* रोहिलखण्ड
*20. सूरत सिंह -* रोहिलखण्ड
*21. हंसकरण रहकवाल -* पृथ्वीराज के सेनापति
*22. मिथुन देव रायकवार -* ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक
*23. सहकरण, विजयराव -* उपरोक्त
*24. राजा हतरा -* हिसार
*25. जगत राय -* बरेली
*26. मुकंदराज -* बरेली 1567 ई.
*27. बुधपाल -* बदायुं
*28. महीचंद राठौर -* बदायुं
*29. बांसदेव -* बरेली
*30. बरलदेव -* बरेली
*31. राजसिंह -* बरेली
*32. परमादित्य -* बरेली
*33. न्यादरचन्द -* बरेली
*34. राजा सहारन -* थानेश्वर
*35. प्रताप राव खींची (चौहान वंश) -* गागरोन
*36. राणा लक्ष्य सिंह -* सीकरी
*37. रोहिला मालदेव -* गुजरात एवम जालोर
*38. जबर सिंह -* सोनीपत
*39. रामदयाल महेचराना -* कलायथ
*40. गंगसहाय ,वीर गंगा सिंह महेचा राठौड़ रोहिला राजपूत -* महेचराना - क्लायथ 1761 ई.
*41. राणा प्रताप सिंह -* कौराली (गंगोह) 1095 ई.
*42. नानक चन्द -* अल्मोड़ा
*43. राजा पूरणचन्द -* बुंदेलखंड
*44. राजा हंस ध्वज -* हिसार व राजा हरचंद
*45. राजा बसंतपाल -* रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई.
*46. महान सिंह बडगूजर -* बागपत 1184 ई.
*47. राजा यशकरण -* अंधली
*48. गुणाचन्द -* जयकरण - चरखी - दादरी
*49. राजा मोहनपाल देव -* करोली
*50. राजारूप सैन -* रोपड़
*51. राजा महीपाल पंवार -* जीन्द
*52. राजा परपदेड पुंडीर -* लाहौर
*53. राजा लखीराव -* स्यालकोट
*54. राजा जाजा जी तोमर -* दिल्ली
*55. खड़ग सिंह -* रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन
*56. राजा हरि सिंह -* खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली
*57. राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) -* सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत
*58. राजा बुद्ध देव रोहिला -* 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
*नोट* ..*इनके अतिरिक्त और बहुत से रोहिला शासक विभिन्न स्थानों पर हुए,जिनकी खोज जारी हैं क्योंकि क्षत्रिय इतिहास को छिपाया गया है जैसे महोबा में चंदेला से पहले रोहिला शासन था, राजस्थान के राठौड़ रोहिलखंड बंदायू से आए थे*
क्रमशः
 
 
* दिनांक 10मई 2011 प्रकाशित.क्षत्रिय आवाज मासिक पत्रिका एवम राजपूत/क्षत्रिय वाटिका(क्षत्रिय वंशावली) 22अगस्त2012 🙏*
*जय राजपूताना*
 
== विस्तृत पठन ==
* ''History of rohilathe Rohilla Afghans'', rajputby kcCharles senHamilton, book1787.
* ''Hastings and the Rohilla War'' by Sir J. Strachey, Oxford, 1892.
 
== सन्दर्भ ==
<references/>
* Hunter, William Wilson, Sir, et al (1908). ''Imperial Gazetteer of India'', Volume 12. 1908–1931; Clarendon Press, Oxford.
The real history Rohila Rajput
{{1911}}
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
 
 
== बाहरी सूत्र ==