"दान": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। पहले युगों में ब्राह्मण राजपुत्रो से दक्षिणा लेते थे और बदले में उन्हे विद्या दान करते थे, जैसे कृपाचार्य, द्रोणाचार्य! प्राचीन काल में राजगुरु राजपुरोहित बस अपने निर्धारित राजा और राजपुत्रो से दक्षिणा लेता था, और बदले में उन्हे दीक्षा देता था! ''' राजगुरु/ब्राह्मण दीक्षा प्रदत्त करता था
== प्रकार ==
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