"कलचुरि राजवंश": अवतरणों में अंतर

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कलचुरी शब्द के विभिन्न रूप- कटच्छुरी, कलत्सूरि, कलचुटि, कालच्छुरि, कलचुर्य तथा कलिचुरि प्राप्त होते हैं। विद्वान इसे [[संस्कृत भाषा]] न मानकर [[तुर्की]] के 'कुलचुर' शब्द से मिलाते हैं जिसका अर्थ उच्च उपाधियुक्त होता है। अभिलेखों में ये अपने को हैहय नरेश अर्जुन का वंशधर बताते हैं। इन्होंने २४८-४९ ई. से प्रारंभ होनेवाले [[संवत्]] का प्रयोग किया है जिसे '''कलचुरी संवत्''' कहा जाता है। पहले वे [[मालवा]] के आसपास रहनेवाले थे। छठी शताब्दी के अंत में बादमी के चालुक्यों के दक्षिण के आक्रमण, गुर्जरों का समीपवर्ती प्रदेशों पर आधिपत्य, मैत्रकों के दबाव तथा अन्य ऐतिहासिक कारणों से पूर्व जबरपुर (जाबालिपुर?) के आसपास बस गए। यहीं लगभग नवीं शताब्दी में उन्होंने एक छोटे से राज्य की स्थापना की। अभिलेखों में कृष्णराज, उसके पुत्र शंकरगण, तथा शंकरगण के पुत्र बुधराज का नाम आता है। उसकी मुद्रओं पर उसे 'परम माहेश्वर' कहा गया है। शंकरगण शक्तिशाली नरेश था। इसने साम्राज्य का कुछ विस्तार भी किया था। [[बड़ौदा]] जिले से प्राप्त एक अभिलेख में निरिहुल्लक अपने को कृष्णराज के पुत्र शंकरगण का सांमत बतलाता है। लगभग ५९५ ई. के पश्चात शंकरगण के बाद उसका उतराधिकारी उसका पुत्र बुधराज हुआ। राज्यारोहण के कुछ ही वर्ष बाद उसने मालवा पर अधिकार कर लिया। [[महाकूट]]-स्तंभ-लेख से पता चलता है कि [[चालूक्य]] नरेश मंगलेश ने इसी बुधराज को पराजित किया था। इस प्रदेश से कलचुरी शासन का ह्रास चालुक्य विनयादित्य (६८१-९६ ई.) के बाद हुआ।
 
[[त्रिपुरी]] के आसपास [[चंदेल साम्राजय]] के दक्षिण भी कलचुरियों ने अपना साम्राज्य सथापित किया था। त्रिपुरी के कलचुरियों के वंश का प्रथम व्यक्ति कोकल्स प्रथम था। अपने युग के इस अद्भुत वीर ने [[भोज प्रथमपरमार]] गुर्जर प्रतीहार तथा उसके सामंतों को दक्षिण नहीं बढ़ने दिया। इनकी निधियों को प्राप्त कर उसने इन्हें भय से मुक्त किया। अरबों को पराजित किया तथा वंग पर धावा किया। इसके १८ पुत्रों का उल्लेख मिलता है किंतु केवल शंकरगण तथा अर्जुन के ही नाम प्राप्त होते हैं। शंकरगण ने मुग्धतुंग, प्रसिद्ध धवल तथा रणविग्रह विरुद्ध धारण किए। इसने राष्ट्रकूट [[कृष्ण द्वितीय]] से मिलकर चालुकय विजयादित्य तृतीय पर आक्रमण किया किंतु दोनों को पराजित होना पड़ा। प्रसिद्ध कवि [[राजशेखर]] उसके दरबार से भी संबंधित रहे। इसके बाद इसका छोटा भाई युवराज सिंहासनारूढ़ हुआ। विजय के अतिरिक्त शैव साधुओं को धर्मप्रचार करने में सहयता पहुँचाई। युवराज के बाद उसका पुत्र लक्ष्मणराज गद्दी पर बैठा, इसने त्रिपुरी की पुरी को पुननिर्मित करवाया। इसी के राज्यकाल से राज्य में ह्रास होना प्रारंभ हो गया। चालुक्य तैलप द्वितीय और मुंज परमार ने इनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया। मुंज ने त्रिपुरी पर विजय प्राप्त कर ली। उसके वापस जाने पर मंत्रियों ने युवराज द्वितीय को राजकीय उपाधि नहीं धारण करने दी और उसके पुत्र कोकल्ल द्वितीय को गद्दी पर बैठाया। इसने साम्राज्य की शक्ति को कुछ दृढ़ किया, किंतु उसके बाद धीरे-धीरे राजनीतिक शक्तियों ने त्रिपुरी के कलचुरियों के साम्राज्य का अंत कर दिया।
 
उत्तर में [[गोरखपुर]] जिले के आसपास कोकल्ल द्वितीय के जमाने में कलचुरियों ने एक छोटा सा राज्य स्थापित किया। इस वंश का प्रथम पुरुष राजा का पुत्र था। इसके बाद शिवराज प्रथम, शंकरगण ने राज्य किया। कुछ दिनों के लिए इस क्षेत्र पर मलयकेतु वंश के तीन राजाओं, जयादित्य, धर्मादित्य, तथा जयादिव्य द्वितीय ने राज किया था। संभवत: भोज प्रथम परिहार ने जयादिव्य को पराजित कर गुणांबोधि को राज्य दिया। गुणांबोधिदेव के पुत्र भामानदेव ने महीपाल गुर्जर प्रतिहार की सहायता की थी। उसके बाद शंकरगण द्वितीय मुग्धतुंग, गुणसागर द्वितीय, शिवराज द्वितीय (भामानदेव), शंकरगण तृतीय तथा भीम ने राज किया। अंतिम महाराजधिराज सोढ़देव के बाद इस कुल का पता नहीं चलता। संभवत: पालों ने इनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।