"विद्युत जनित्र": अवतरणों में अंतर

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इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यावहारिक रूप में चालक की लंबाई एवं वेग दोनों ही बहुत अधिक होने चाहिए और साथ ही चुंबकीय अभिवाह घनत्व भी अधिकतम हो। चुंबकीय क्षेत्र भी अधिकतम हो। चुंबकीय क्षेत्र की अधिकतम सीमा उसके संतृप्त होने के कारण निर्धारित होती है। चालक की लंबाई बढ़ाना भी व्यावहारिक रूप से संभव नहीं, परंतु एक से अधिक चालक को इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है कि उनमें प्रेरित वि.वा.ब. जुड़कर व्यावहारिक बन जाए। वस्तुत: जनित्र में एक चालक के स्थान पर चालक का एक तंत्र होता है, जो एक दूसरे से एक निर्धारित योजना के अनुसार संयोजित होते हैं। इन चालकों को धारण करनेवाला भाग आर्मेचर (Armature) कहलाता है और इनकी संयोजन विधि को आर्मेचर कुंडलन (Armature Winding) कहते हैं।
 
वेग अधिक होने से, घूमनेवाले चालकों पर अपकेंद्र बल (centrifugal force) बहुत अधिक हो जाता है, जिसके कारण आर्मेचर पर उनकी व्यवस्था भंग हो जा सकती है। अत: इन्हें आर्मेचर पर बने खाँपोंखाँचों (slots) में रखा जाता है। आर्मेचर चालकों को धारण करने के साथ ही उनको घुमाता भी है, जिसके लिए उसका शाफ्ट (shaft) यांत्रिक ऊर्जा का संभरण करनेवाले यंत्र के शाफ्ट से युग्मित (coupled) होता है। यह यंत्र पानी से चालनेवालाचलनेवाला टरबाइन, या भाप से चालनेवालाचलनेवाला टरबाइन या इंजन, हो सकता है। किसी भी रूप में उपलब्ध यांत्रिक ऊर्जा को आर्मेचर का शाफ्ट घुमाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के यंत्र जनित्र को चलाने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इन्हें प्रधान चालक (Prime Mover) कहते हैं। विभिन्न प्रकार के इंजन, जैसे वाष्प इंजन, डीजल इंजन, पेट्रोल इंजन, गैस टरबाइन इत्यादि मशीनें, प्रधान चालक के रूप में प्रयुक्त की जाती हैं और इनकी यांत्रिक ऊर्जा को जनित्र द्वारा विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
 
==दिष्टधारा जनित्र (डीसी जनरेटर)==