"नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक)": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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==रचनाएँ==
नागार्जुन की रचनाएँ अपनी शैली तथा युक्ति के लिए अत्यंत प्रख्यात हैं। इन रचनाओं में प्रसिद्धि पानेवाले ग्रंथ ये हैं -
(1) '''प्रमाणविघटन''' अथवा '''प्रमाणविध्वंसन''', जिसमें [[गौतम मुनि|गौतम]] के षोडश पदार्थों के रूप तथा लक्षण का खंडन किया गया है। संस्कृत मूल उपलब्ध नहीं है केवल तिब्बती में इसके मूल तथा टीका के अनुवाद प्राप्य है।
(2) '''उपायकौशल्यहृदय शास्त्र''', जिसमें प्रतिवादी के ऊपर विजय पाने के लिए जाति, निग्रह
(3) '''विग्रह व्यावर्तनी''', 72 कारिकाओं में निबद्ध यह ग्रंथ मूल संस्कृत तथा तिब्बती अनुवाद दोनों में उपलब्ध है। वण्र्य-विषय है गौतम सम्मत प्रमाण का खंडन तथा तदुपरांत स्वाभिमत [[शून्यवाद]] का। युक्तियों से मंडन। छोटा होने पर भी बौद्धन्याय की जानकारी के लिए यह महत्वपूर्ण रचना है।
(4) '''युक्तिषष्टिका''', जिसके कतिपय श्लोक बौद्ध ग्रंथों में प्रमाण की दृष्टि से उद्घृत किए गए हैं।
(5) '''सुहृल्लेख''', इसका ऊपर उल्लेख किया गया है। मूल संस्कृत के अभाव में इसके वण्र्य विषय की जानकारी हमें इसके तिब्बती अनुवाद से ही होती है। नागार्जुन ने इस पत्र के द्वारा अपने सुहृद् यज्ञश्री शातवाहन को परमार्थ तथा व्यवहार की शिक्षा दी है। बौद्ध साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनके द्वारा बौद्ध आचार्यों ने अपने किसी मान्य शिष्य को अथवा तत्वजिज्ञासु को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का उपदेश दिया।
(6) '''चतु:स्तव''', तथागत की प्रशस्त स्तुति में लिखे गए
(7) नागार्जुन के कीर्तिमंदिर का स्तंभ स्थानीय महनीय दार्शनिक ग्रंथ है
==नागार्जुन का शून्यवाद==
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