"मुर्गी": अवतरणों में अंतर
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<s>भारत में मुर्गियों की प्रायः केवल चार शुद्ध भारतीय नस्लें उपलब्ध हैं – १. आसील, २. चटगाँव, ३. कड़कनाथ, ४. बसरा</s>
<s>इसके अतिरिक्त इनकी कुछ अन्य मुर्गीपालन किस्में भी हैं जिन्हे विकसित किया गया है। १. झारसीम - झारखंड, २. कामरूपा - असम, ३. प्रतापधान - राजस्थान, ४. ग्रामप्रिया, ५. स्वरनाथ, ६. केरी श्यामा आदि<nowiki>[[File:కోడి పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|thumb |right ]]</nowiki></s>[[File:కోడి పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|thumb |right |{{आधार}}{{आधार}}मुर्गी या मुर्गा पक्षी वर्ग के प्राणी है। नर को मुर्गा व मादा को मुर्गी कहा जाता है। इन को वैज्ञानिक रूप से गैलस गैलस डोमेस्टिकस (Gallus Gallus Domesticus) के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से लाल जंगल फ्लो (Jungleflow) की उप-प्रजाति है। लाल जंगली मुर्गी प्रजाति आज भी जंगल में रहती है। यह एक अंडा देने वाला पक्षी है, कम उड़ पाता है, इसका मांस खाने में स्वादिष्ट होता है। किसी समय में यह जंगल में स्वतंत्रता से विचरण करने वाले पक्षी थे। मुर्गी रज्जुकी जीवों के समूह का हिस्सा है। जिसमें उन कशेरुकी जीवो को रखा जाता है जो अपने जीवन काल में कभी न कभी अकशेरुकी रहे हो। मानव सभ्यता के विकास के साथ जब हमने अपनी आवश्यकता के अनुसार पशुओ को पालना प्रारम्भ किया तब ही मानवो ने मुर्गी को भी अंडे व मास के लिए पालना शुरू का दिया। मुर्गी से हमें न सिर्फ अंडे व मास मिलता है अपितु यह हमारे आस पास के हानिकारक कीटो को भी खाती है। मुर्गे का उपयोग भोजन के अलावा मनोरंजन के लिए लड़ने में और कीटनियत्रण में भी किया जाता रहा है। मुर्गी की बीट एवं फाइबर सभी काम में आते हैं। वीट का प्रयोग ईंधन एवं खाद के रूप में होता है वही पंखों से ऑर्गेनिक प्लास्टिक बनाई जाती है। मुर्गी के मांस का वह भाग जिसे मनुष्य नहीं खाते उससे पालतू पशु का भोजन बनाया जाता है।[[चित्र:Female_pair.jpg|दाएँ|अंगूठाकार|मुर्गा मुर्गी]]'''मुर्गी''' या '''कुक्कुट''' ([[लिंग (व्याकरण)|पुलिंग]]: मुर्गा) एक [[पक्षी]] श्रेणी का [[रज्जुकी]] प्राणी है। आनुवंशिक अध्ययनों से पता चलता है कि इनकी उत्पत्ति दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया में हुई थी। भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली प्रजातियों की उत्पत्ति को अमेरिका, यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका से माना जाता है। मुर्गियां सर्वाहारी होती हैं जो नस्ल के आधार पर लगभग पांच से पंद्रह साल तक जीवित रह सकती है।[[चित्र:కోడి_పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|दाएँ|अंगूठाकार]]भारत में मुर्गियों की प्रायः केवल चार शुद्ध भारतीय नस्लें उपलब्ध हैं – १. आसील, २. चटगाँव, ३. कड़कनाथ, ४. बसरा
<s>इसके अतिरिक्त इनकी कुछ अन्य मुर्गीपालन किस्में भी हैं जिन्हे विकसित किया गया है। १. झारसीम - झारखंड, २. कामरूपा - असम, ३. प्रतापधान - राजस्थान, ४. ग्रामप्रिया, ५. स्वरनाथ, ६. केरी श्यामा आदि<nowiki>[[File:కోడి పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|thumb |right ]]</nowiki></s>[[File:కోడి పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|thumb |right ]]▼
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== इन्हें भी देखें==
धन्यवाद[[File:కోడి పిల్లIMG20191207080730-01.jpg|thumb |right ]]
== इन्हें भी देखें==
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