"एम॰ टी॰ वासुदेव नायर": अवतरणों में अंतर

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'''एम॰ टी॰ वासुदेव नायर''' [[मलयालम भाषा]] के विख्यात साहित्यकार हैं। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] विजेता रहे हैं। इनके द्वारा रचित एक [[उपन्यास]] '''[[कालम ]]''' के लिये उन्हें सन् 1970 में [[भारतीय साहित्य अकादमी|साहित्य अकादमी]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया।<ref name="sahitya">{{cite web | url=http://sahitya-akademi.gov.in/sahitya-akademi/awards/akademi%20samman_suchi_h.jsp | title=अकादमी पुरस्कार | publisher=साहित्य अकादमी | accessdate=11 सितंबर 2016 | archive-url=https://web.archive.org/web/20160915135020/http://sahitya-akademi.gov.in/sahitya-akademi/awards/akademi%20samman_suchi_h.jsp | archive-date=15 सितंबर 2016 | url-status=dead }}</ref>एम॰ टी॰ वासुदेव नायर का जन्म 9 अगस्त 1933 को केरल के पोन्नानी तालुक के कुटल्लूर नामक गांव में हुई थी। उनकी मां अम्मालू अम्मा और पिताजी का नाम टी. नारायणन नायर था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कुमरनल्लूर स्कूल से हुई थी, जहां से वे सन् 1942 में 14 वर्ष की उम्र में दसवीं पास किए थे।
 
सन् 1953 में एम॰ टी॰ ने एम॰ टी॰ पालक्कड़ विक्टोरिया कॉलेज से बीएससी पास की थी, तदुपरांत उन्हें पालक्कड़ के प्रतिष्ठित एम बी ट्यूटोरियल कॉलेज में अध्यापक की नौकरी मिल गई थी एवं उसी कॉलेज के मालिक 'मलयाली' नामक मासिक पत्रिका प्रकाशित करते थे जिसमें एम॰ टी॰ निरंतर लिखने लगे। उनकी पहली उपन्यास 'आधी रात और दिन का प्रकाश' इसी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कॉलेज में काम करते, जिला बोर्ड स्कूल में लीव वेकन्सी में अध्यापक पद भी संभाले। फिर ब्लॉक विकास कार्यालय में ग्राम सेवक के पद पर नियुक्ति मिली। लेकिन उच्च अधिकारी से निभा ना सके तो दो दिन के भीतर ही इस्तीफा दे दिया। सन 1956 में मलयालम के प्रतिष्ठित सप्ताहिक मातृभूमि में सह संपादक के पद पर नियुक्ति मिली, 1968 में संपादक बन गए। 1981 में, सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य सृजन में संलग्न रहे, 1988 में 'मातृभूमि' के सभी प्रकाशनों के संयुक्त संपादक के प्रतिष्ठित पद पर उनकी नियुक्ति हो गई।
 
फिल्म वित्तीय निगम, फिल्म सेंसर बोर्ड, फिल्म इंस्टीट्यूट, केरल साहित्य अकादमी (अध्यक्ष), केरल साहित्य अकादमी (सदस्य) आदि संस्थाओं से उनका संबंध रहा है।
 
== सन्दर्भ ==