"राजबली पाण्डेय": अवतरणों में अंतर
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| birth_name = <!-- only use if different from name above -->
| birth_date = {{birth date|df=yes|1907|05|07}}
| birth_place = करौनी गाँव, [[रुद्रपुर (तहसील), देवरिया|रुद्रपुर तहसील]], [[देवरिया जिला|देवरिया]], [[उत्तर प्रदेश|उ.प्र.]]
| baptised =
| disappeared_date = <!-- {{disappeared date and age|YYYY|MM|DD|YYYY|MM|DD}} (disappeared date then birth date) -->
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| citizenship = भारत
| education = बी.ए. (प्रतिष्ठा) संस्कृत (1931)<br /> एम.ए. (1933)<br />डी.लिट् (1936)
| alma_mater = कला संकाय, [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]]
| occupation =
| years_active = 1930–71
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==जीवन==
डॉ. राजबली पाण्डेय का जन्म ७ मई १९०७ को [[उत्तर प्रदेश]] के [[देवरिया जिला|देवरिया जिले]] के [[रुद्रपुर (तहसील), देवरिया|रुद्रपुर]] तहसील के करौनी गाँव में हुआ था। उन्होंने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] से संस्कृत के साथ बीए किया, तत्पश्चात् १९३३ में वहीं से एम.ए. एवं १९३६ में डी.लिट् किया। शिक्षा ग्रहण के उपरान्त उन्होंने अपने जीवन की आरम्भ [[गीता प्रेस]] द्वारा प्रकाशित "[[कल्याण]]" के संपादक और [[रामकृष्ण डालमिया]] की पुत्री रमाबाई के ट्यूटर के रूप में की थी। उन्हें 1936 में [[महामना मदनमोहन मालवीय]] ने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] में नियुक्त किया था। उन्हें तत्कालीन उपकुलपति डॉ. [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] द्वारा रीडर के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्हें 1952 में कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) के प्रमुख और प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया गया था। राजनीतिक दबाव के कारण<ref>{{Cite book|title=ए सर्वे ऑफ दि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी,|last=|first=|publisher=संशोधन विधेयक|year=1964|isbn=|location=|pages=9}}</ref> उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छोड़ दिया और प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के प्राचार्य और अध्यक्ष के रूप में [[रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय]] (जबलपुर विश्वविद्यालय) से जुड़ गए।▼
▲उन्होंने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] से संस्कृत के साथ बीए किया, तत्पश्चात् १९३३ में वहीं से एम.ए. एवं १९३६ में डी.लिट् किया। शिक्षा ग्रहण के उपरान्त उन्होंने अपने जीवन की आरम्भ [[गीता प्रेस]] द्वारा प्रकाशित "[[कल्याण]]" के संपादक और [[रामकृष्ण डालमिया]] की पुत्री रमाबाई के ट्यूटर के रूप में की थी। उन्हें 1936 में [[महामना मदनमोहन मालवीय]] ने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] में नियुक्त किया था। उन्हें तत्कालीन उपकुलपति डॉ. [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] द्वारा रीडर के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्हें 1952 में कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) के प्रमुख और प्राचार्य के रूप में नियुक्त किया गया था। राजनीतिक दबाव के कारण<ref>{{Cite book|title=ए सर्वे ऑफ दि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी,|last=|first=|publisher=संशोधन विधेयक|year=1964|isbn=|location=|pages=9}}</ref> उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छोड़ दिया और प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के प्राचार्य और अध्यक्ष के रूप में [[रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय]] (जबलपुर विश्वविद्यालय) से जुड़ गए।
== प्रकाशन ==
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