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हवायें सागर की सतह पर घर्षण के द्वारा धाराओं का निर्माण करती हैं जिसकी वजह से पूरे सागर के पानी एक धीमा लेकिन स्थिर परिसंचरण स्थापित होता है। इस परिसंचरण की दिशा कई कारकों पर निर्भर करती है जिनमें महाद्वीपों का आकार और पृथ्वी का घूर्णन शामिल हैं। गहरे सागर की जटिल धारायें जिन्हें [[थर्मोहेलीन परिसंचरण| वैश्विक वाहक पट्टे]] के नाम से भी जाना जाता है ध्रुवों के ठंडे सागरीय जल को हर महासागर तक ले जाती हैं। सागरीय जल का बड़े पैमाने पर संचलन [[ज्वार-भाटा |ज्वार]] के कारण होता है, दैनिक रूप से दो बार घटने वाली यह घटना [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] द्वारा पृथ्वी पर लगाये जाने वाला गुरुत्व बल के कारण घटित होती है, हालाँकि पृथ्वी, सूर्य द्वारा लगाये जाने वाला गुरुत्व बल से भी प्रभावित होती है पर चंद्रमा की तुलना में यह बहुत कम होता है। उन खाड़ियों और ज्वारनदमुखों में इन ज्वारों का स्तर बहुत अधिक हो सकता है जहां ज्वारीय प्रवाह संकीर्ण वाहिकों में बहता है।
 
सागर में जीवित प्राणियो के सभी प्रमुख समूह जैसे कि [[जीवाणु]], प्रोटिस्ट, [[शैवाल]], [[फफूंद|कवक]], [[पादप]] और जीव पाए जाते हैं। माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सागर में ही हुई थी, साथ ही यहाँ पर ही जीवों के बड़े समूहों मे से कइयों का विकास हुआ। सागरों में पर्यावास और पारिस्थितिकी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला समाहित है।
 
सागर दुनिया भर के लोगों के लिए भोजन, मुख्य रूप से [[मछली]] उपलब्ध कराता है किंतु इसके साथ ही यह कस्तूरों, सागरीय स्तनधारी जीवों और सागरीय शैवाल की भी पर्याप्त आपूर्ति करता है। इनमें से कुछ को मछुआरों द्वारा पकड़ा जाता है तो कुछ की खेती पानी के भीतर की जाती है। सागर के अन्य मानव उपयोगों में [[व्यापार]], [[यात्रा]], खनिज दोहन, बिजली उत्पादन और नौसैनिक युद्ध शामिल हैं, वहीं आनंद के लिए की गयी गतिविधियों जैसे कि तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग के लिए भी सागर एक आधार प्रदान करता है। इन गतिविधियों मे से कई गतिविधियां सागरीय प्रदूषण का कारण बनती हैं। मानव संस्कृति में सागर महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग सिनेमा, शास्त्रीय संगीत, साहित्य, रंगमंच और कलाओं में बहुतायत से किया जाता है। हिंदु संस्कृति में सागर को एक [[देवता|देव]] के रूप में वर्णित किया गया है। विश्व के कई हिस्सों में प्रचलित पौराणिक कथाओं में सागर को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। हिन्दी भाषा में सागर के कई [[पर्यायवाची]] शब्द हैं जिनमें जलधि, जलनिधि, नीरनिधि, उदधि, पयोधि, नदीश, तोयनिधि, कम्पती, वारीश, अर्णव आदि प्रमुख हैं।
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== परिभाषा ==
[[File:Oceans of the World.jpg|thumb|300px|पृथ्वी के सभी सागरो का समन्वय |alt=Cylindrical projection map of world's oceans]]
सागर से तत्पर्य उस जलराशि से है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है और जो इस पृथ्वीतल के प्रायः तीन चतुर्थांश (३/४) में व्याप्त है। सागर पृथ्वी के सभी महासागरों का समन्वय है जिसके अन्तर्गत [[अटलांटिक महासागर]], प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर, और आर्कटिक महासागर आते है।
 
यद्यपि समस्त संसार एक ही समुद्र से घिरा हुआ है, तथापि सुभीते के लिये उसके पाँच बड़े भाग कर लिए गए हैं; और इनमें से प्रत्येक भाग सागर या महासागर कहलाता है । पहला भाग जो अमेरिका से यूरोप और अफ्रिका के मध्य तक विस्तृत है, एटलांटिक समुद्र (सागर या महासागर भी) कहलाता है । दूसरा भाग जो अमेरिका और एशिया के मध्य में है, पैसिफिक या प्रशांत समुद्र कहलाता है । तीसरा भाग जो अफ्रिका से भारत और आस्ट्रेलिया तक है, इंडियन या भारतीय समुद्र हिंद महासागर कहलाता है । चौथा समुद्र जो एशिया, यूरोप और अमेरिका, उत्तर तथा [[उत्तरी ध्रुव]] के चारो ओर है, आर्कटिक या [[उत्तरी समुद्र]] कहलाता है और पाँचवा भाग जो [[दक्षिणी ध्रुव]] के चारो और है, एंटार्कटिक या [[दक्षिणी समुद्र]] कहलाता है । परन्तु आजकल लोग प्रायः उत्तरी समुद्र और दक्षिणी समुद्र - ये दो ही समुद्र मानते हैं, क्योंकि शेष तीनों दक्षिणी समुद्र से बिलकुल मिले हुए है; दक्षिण की ओर उनकी कोई सीमा नहीं है। समुद्र के जो छोटे छोटे टुकड़े स्थल में अंदर की ओर चले जाते हैं, वे '[[खाड़ी]]' कहलाते हैं। जैसे, [[बंगाल की खाड़ी]]।
 
समुद्र की कम से कम गहराई प्रायः बारह हजार फुट और अधिक से अधिक गहराई प्रायः तीस हजार फुट तक है । समुद्र में जो लहरें उठा करती हैं, उनका स्थल की ऋतृओं आदि पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है। भिन्न भिन्न अक्षांशों में समुद्र के ऊपरी जल का तापमान भी भिन्न होता है । कहीं तो वह ठंढा रहता है, कहीं कुछ गरम और कहीं बहुत गरम। ध्रुवों के आसपास उसका जल बहुत ठंढा और प्रायः बरफ के रूप में जमा हुआ रहता है। परन्तु प्रायः सभी स्थानों में गहराई की ओर जाने पर अधिकाधिक ठंढा पानी मिलता है।