"गुरु जम्भेश्वर": अवतरणों में अंतर

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| caption = '''श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान'''
| affiliation = [[बिश्नोई]] संप्रदाय
| cult_center = [[मुकाम]], [[समराथल|समराथल धोरा]], [[जाम्भोलाव धाम]], [[पीपासर]], [[लालासरसालासर]],[[जांगलू]],रोटू,[[रामड़ावास]],[[लोदीपुर]]आदि।
| mantra = "विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी"
| symbol = [हरे वृक्ष] <!-- or | symbols = -->
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| parents = लोहटजी पंवार और
माता हंसा कंवर
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| festivals =श्री जम्भेश्वर महाराज जन्माष्टमी प्रत्येक माह अमावस्या व्रत एवं प्रमुख(होली पाहल)
|हिन्दू Rajput Pawar ]], [[पंवार|(पंवार)]]
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}}{{आधार}}
 
'''गुरू श्री जम्भेश्वर''' [[बिश्नोई]] संप्रदाय के संस्थापक थे। ये जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने विक्रमी संवत् 1542 सन 1485 मे बिश्नोई पंथ की स्थापना की। 'हरि' नाम का वाचन किया करते थे। हरि [[विष्णु|भगवान विष्णु]] का एक नाम हैं। बिश्नोई शब्द मूल रूप से निकला है, जिसका अर्थ है '29 नियमों का पालन करने वाला'। गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि [[भगवान]] सर्वत्र है। वे हमेशा [[वृक्ष|पेड़]] पौधों वन एवं वन्यजीवों सभी जानवरों पृथ्वी पर चराचर सभी जीव जंतुओं की रक्षा करने का संदेश देते थे। इन्होंंनेे वन्यजात जीवोंपात, पशुछुआछूत, पक्षियोंस्त्री किपुरुष जीवहत्यामें एवंभेदभाव,जीव हरेहत्या पेड़ पौधों की कटाई ,नशे पत्ते जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर किया व स्वच्छता को बढ़ावा दिया ।ये जीव हत्या को पाप मानते थें। शुद्ध शाकाहारी भोजन खाने कि बात समझाते थें।
 
इनका जन्म [[राजस्थान]] के [[नागौर]] परगने के पीपासर गांव में एक हिन्दू [राजपूत[जाट]] किसान परिवार में विक्रमी संवत् 1508 सन 1451 भादवा वदी अष्टमी को अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में हुआ था।
 
[[File:Mukam Tomb.JPG|thumb|250px| गुरु श्री जम्भेश्वर का मन्दिर मुकाम, नोखा,बीकानेर, [[राजस्थान]] |पाठ=9468509568.9928422680]]
 
== जीवन परिचय==
 
जाम्भोजी का जन्म एक हिन्दू [[राजपूतजाट]] किसान परिवार में विक्रमी संवत् 1508 सन् 1451 भादवा वदी अष्टमी जन्माष्टमी को अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में हुआ था। इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा कंवर (केसर) था, ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती 7 वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही इनके चेहरे पर हंसी रहती थीं । 7 वर्ष बाद इन्होंने विक्रमी संवत् 1515 सन 1458 को भादवा वदी अष्टमी के दिन ही अपना मौन तोड़ा और सबसे पहला शब्द (गुरू चिन्हों गुरु चिन्ह पुरोहित गुरुमुख धर्म बखानी) उच्चारण किया। इन्होंने 27 वर्ष तक गौपालन किया। इसी बीच इनके पिता लोहाट जी पंवार और उनकी माता हंसा देवी की मृत्यु हो गई तो इन्होंने अपनी सारी संपत्ति जनहित में लगा दी और आप निश्चित रूप से समराथल धोरे पर विराजमान हो गए गुरु जम्भेश्वर भगवान ने विक्रमी संवत 1542 सन 1485 में 34 वर्ष की अवस्था में बीकानेर राज्य के समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्टमी को पाहल बनाकर बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने शब्दवाणी के माध्यम से संदेश दिए थे, इन्होंने अगले 51 वर्ष तक में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया और ज्ञानोपदेश दिया। गुरु जंभेश्वर भगवान ने छुआछूत ,जात पात ,स्त्री पुरुष में भेदभाव, पेड़ पौधों की कटाई ,जीव हत्या व नशे पत्ते जैसी सामाजिक कुरीतियोंं को दूर किया वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ 120 शब्द ही है। बिश्नोई समाज के लोग 29 धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर भगवान ने ही दिए थे। इन 29 नियमों में से 8 नियम जैव वैविध्य तथा [[प्राणी|जानवरों]] की रक्षा के लिए है , 7 धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश आध्यात्मिक उत्थान के लिए हैं जिसमें [[भगवान]] को याद करना और पूजा-पाठ करना। [[बिश्नोई]] समाज का हर साल [[मुकाम]] या मुक्तिधाम मुकाम में [[मेला]] भरता है जहां लाखों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु जी ने जिस [[बिश्नोई]] संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और नोई का मतलब 9 होता है इनको मिलाने पर 29 होते है बिश+नोई=बिश्नोई/अर्थात बिश्नोई यानी 29 नियमों को मानने वाला। बिश्नोई संप्रदाय के लोग [[खेजड़ी]] (Prosopis cineraria) को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं।
 
हर अमावस के दिन जंभेश्वर भगवान के मंदिर में और बिश्नोई समाज के घरों में रोज सुबह गाय के शुद्ध देसी घी, नारियल, हवन सामग्री के द्वारा हवन किया जाता हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है वायुप्रदूषण कम होती है और ।यह वायु में उपस्थित हानिकारक तत्वों को कम करता है।