"दलित": अवतरणों में अंतर

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हालांकि साहित्य में दलित वर्ग की उपस्थिति [[बौद्ध]] काल से मुखरित रही है किंतु एक लक्षित [[मानवाधिकार]] [[आंदोलन]] के रूप में दलित साहित्य मुख्यतः बीसवीं सदी की देन है।<ref>भारतीय दलित आंदोलन : एक संक्षिप्त इतिहास, लेखक : [[मोहनदास नैमिशराय]], बुक्स फॉर चेन्ज, आई॰एस॰बी॰एन॰ : ८१-८७८३०-५१-१</ref> दलित साहित्य से तात्‍पर्य दलित जीवन और उसकी समस्‍याओं पर लेखन को केन्‍द्र में रखकर हुए साहित्यिक आंदोलन से है । दलितों को हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण [[न्याय]], [[शिक्षा]], [[समानता]] तथा [[स्वतन्त्रता|स्वतंत्रता]] आदि मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। उन्‍हें अपने ही [[धर्म]] में [[अस्पृश्यता|अछूत]] या अस्‍पृश्‍य माना गया। दलित साहित्यकारों में से अनेकों ने दलित पीड़ा को कविता की शैली में प्रस्तुत किया। कुछ विद्वान 1914 में ’सरस्वती’ पत्रिका में [[हीरा डोम]] द्वारा लिखित ’अछूत की शिकायत’ को पहली दलित कविता मानते हैं। कुछ अन्य विद्वान [[स्वामी अछूतानन्द]] ‘हरिहर’ को पहला दलित कवि कहते हैं, उनकी कविताएँ 1910 से 1927 तक लिखी गई। उसी श्रेणी मे 40 के दशक में [[बिहारी लाल हरित]] ने दलितों की पीड़ा को कविता-बद्ध ही नहीं किया, अपितु अपनी भजन मंडली के साथ दलितों को जाग्रत भी किया । दलितों की दुर्दशा पर बिहारी लाल हरित ने लिखा :
: ''एक रुपये में जमींदार के, सोलह आदमी भरती ।
: ''रोजाना भूखे मरते, मुझे कहे बिना ना सरती ॥[[अछूतों का बेताज बादशाह]]
: ''दादा का कर्जा पोते से, नहीं उतरने पाया ।
: ''तीन रुपये में जमींदार के, सत्तर साल कमाया ॥
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दलित" से प्राप्त