"नव्य न्याय": अवतरणों में अंतर

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'''नव्य न्याय''', [[भारतीय दर्शन]] का एक सम्प्रदाय (school) है जो [[मिथिला]] के दार्शनिक [[गंगेश उपाध्याय]] द्वारा तेरहवीं शती में प्रतिपादित किया गया। इसमें पुराने [[न्याय दर्शन]] को ही आगे बढ़ाया गया है। [[वाचस्पति मिश्र]] तथा [[उदयन]] (१०वीं शती की अन्तिम बेला) आदि का भी इस दर्शन के विकास में प्रभाव है।
'''नव्य न्याय''' [[न्याय शास्त्र]] की एक शाखा है। इसका विकास [[मिथिला]] और [[नवद्वीप]] में हुआ।
 
गंगेश उपाध्याय ने [[हर्ष]] के [[खण्डनखण्दकाध्याय]] नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक [[तत्वचिन्तामणि]] की रचना की। खण्डनखण्दकाध्याय में [[अद्वैत वेदान्त]] का समर्थन एवं [[न्याय दर्शन]] के कतिपय सिद्धान्तों की आलोचना की गयी थी।
 
{{आधार}}
 
[[श्रेणी:न्यायशास्त्र]]
[[श्रेणी:दर्शन]]
 
[[en:Navya-Nyāya]]