"अहुरा मज़्दा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Darius I the Great's inscription.jpg|thumb|240px|ईरान के बीसतुन शिलालेख में अहुर माज़्दा का कई बार वर्णन है]]
[[चित्र:Taq-e Bostan - High-relief of Ardeshir II investiture.jpg|thumb|240px|ताक़-ए-बोस्तान की शिलाओं पर - बाएँ पर मित्र (देवता), दाएँ में अहुर माज़्दा और बीच में [[सासानी साम्राज्य|सासानी सम्राट]] शापूर द्वितीय राज्यभार ग्रहण करते हुए]]
'''अहुर मज़्दा''', '''असुर महत'''<ref name=S>{{cite book |title=Sandarbha Bhāratī |page=105 |url=https://books.google.com.bd/books?id=EPgvAAAAIAAJ&q=असुर+महत&dq=असुर+महत&hl=bn&sa=X&ved=2ahUKEwitz8SqzOzuAhVTbysKHax_DTcQ6AEwA3oECAUQAg |access-date=15 February 2021 |language=hi}}</ref><ref name=B>{{cite book |title=Śrī Bhaṃvarīlāla Bākalīvāla smārikā |date=1968 |publisher=Śrī Bhāratavarshīya Śāntivīra Digambara Jaina Siddhānta Saṃrakshiṇī Sabhā |page=286 |url=https://books.google.com.bd/books?id=Z3MEAAAAMAAJ&q=असुर+महत&dq=असुर+महत&hl=bn&sa=X&ved=2ahUKEwitz8SqzOzuAhVTbysKHax_DTcQ6AEwBnoECAIQAg |access-date=15 February 2021 |language=hi}}</ref><ref name=pp>https://bn.wikisource.org/wiki/পাতা:পৃথিবীর_পুরাতত্ত্ব_(প্রথম_খণ্ড)_-_বিনোদবিহারী_রায়.pdf/১৬৬</ref> [[अवस्ताई भाषा]] में प्राचीन ईरानी पंथ के एक देवता का नाम है जिन्हें [[पारसी धर्म|पारसी पंथ]] के संस्थापक [[ज़रथुश्त्र]] ने अजन्मा और सर्वज्ञ [[परमेश्वर]] बताया था। इसके अलावा इनके लिए ओह्रमज़्द, होउरमज़्द, हुरमुज़, अरमज़्द और अज़्ज़न्दारा नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। वे पारसी पंथ के सर्वोच्च देवता हैं और यस्न (पारसी पूजा विधि है) में इन्हें सर्वप्रथम और सर्वाधिक सम्बोधित किया जाता है। [[ऋग्वेद]] 2: 1: 6 में, उन्हें ''असुर महत'' के रूप में वर्णित किया गया है।<ref name=S/><ref name=pp/><ref name=B/> अथर्वेद सर्वाधिक पारसी पंथ के करीब है। इसमें वरुण देव को असुर माधा भी संबोधित किया है। अहुर मज़्दा को प्रकाश और अच्छाई उनके ख़िलाफ़ शैतानी दाएवों का अध्यक्ष है [[अंगिरा मैन्यु]]।
देव गणों की पूजा का उल्लेख १५वी शताब्दी ईसा पूर्व में ईरान से लेकर सीरिया और तुर्की में पाया जाता है। इन अभिलेखों में भारत से इन देवताओं के आने का उल्लेख है। हालाकिइससे देवपता औरचलता दैवहै एककि दुसरेअगले केहजार उल्टेसाल मानेमें जातेदक्षिणी हैं।इरान ’दैव’में शब्दकुछ जहालोग अवेस्ता और गाथा में अंधेरेदेवो के लिएबदले वहीअसुर ’दीव’को शब्दपूजने देवताओं और उजाले के लिए उपयोग होता है।लगे। पारसी पंथ शुरूआत ५वी शताब्दी ईसा पूर्व से मानता है।
[[आदिम हिन्द-ईरानी भाषा|आदिम हिन्द-ईरानी लोगों]] के पंथ में संसार और ब्रह्माण्ड में अच्छाई और सही व्यवस्था के महत्त्व पर ज़ोर था। जब भारतीय आर्य और ईरानी लोगों का विभाजन हुआ तो इस सही व्यवस्था के लिए [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में शब्द 'ऋत' बना और [[ईरानी भाषा परिवार|ईरानी भाषाओँ]] में इसका [[सजातीय शब्द|सजातीय]] 'अर्ता' (<small>{{Nastaliq|ur|ارته}}</small>) बना, जिसका एक अन्य रूप 'अशा' है। ध्यान दीजिये कि क्योंकि [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार]] की सदस्य है इसलिए उसमें भी सही के लिए इस से मिलता-जुलता 'राईट' (<small>right</small>) शब्द है। इसके विपरीत जाने वाली क्रिया को संस्कृत में 'द्रुह' और फ़ारसी में 'द्रुज' कहा गया, यानि 'झूठा' या 'बुरा'। पारसी धर्म में अहुर मज़्दा अर्ता के लिए और द्रुज के खिलाफ़ हैं जबकि अंगिरा मैन्यु उस से विपरीत है।<ref name="ref72memep">[http://books.google.com/books?id=r4I-FsZCzJEC Asian mythologies] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20130930101633/http://books.google.com/books?id=r4I-FsZCzJEC|date=30 सितंबर 2013}}, Yves Bonnefoy, University of Chicago Press, 1993, ISBN 978-0-226-06456-7, ''... the Good was thus the right adjustment (arta in Iranian, ṛta in Sanskrit) ... Evil was their dissociation (anṛta in Sanskrit) ... Truth, to which is opposed the druj (in Sanskrit: druh), 'deceit, lies, falseness, unreality' ...''</ref>
 
== परिचय ==
अहुरमज्द प्राचीन [[ईरान]] के पैगंबर [[ज़रथुस्त्र]] की ईश्वर (अहु=स्वामी, मज्द=परम ज्ञान) को प्रदत्त संज्ञा। सर्वद्रष्टा, सर्वशक्तिमान्‌, सृष्टि के एक कर्ता, पालक एवं सर्वोपरि तथा अद्वितीय, जिसे वंचना छू नहीं सकती और जो निष्कलंक है। पैगंबर की 'गाथाओं' अथवा स्तोत्रों में ईश्वर की प्राचीनतम, महत्तम एवं अत्यंत पवित्र भावना का समावेश मिलता है और उसमें प्राकृतिक शक्ति (स्थ्रोंपॉमर्फिक) पूजा का सर्वथा अभाव है जो प्राचीन आर्य और सामी देवताओं की विशेषता थी। धार्मिक नियमों में जिनका पालन करना प्रत्येक ज़रथुस्त्र मतावलंबी का कर्तव्य माना जाता है; उसे इस प्रकार कहना पड़ता है-''मैं अहुरमज्द के दर्शन में आस्था रखता हूँ... मैं असत दैवोदेवताओं की प्रभुता तथा उनमें विश्वास रखनेवालों की अवहेलना करता हूँ।'' आधुनिक पश्चिमी विद्वान लोगो ने दैवो और देवताओं को बराबर कर दिया जबकि संस्कृत में दैव शब्द और देव शब्द के विपरीत अर्थ है।
 
इस प्रकार प्रत्येक नवमतानुयायी प्रकाश का सैनिक होता है जिसका पुनीत कर्तव्य अंधकार और वासना की शक्तियों से धर्मसंस्थान के लिए लड़ना है।