"वैष्णव सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
पंक्ति 12:
इसके अलावा मध्यकालीन उत्तरभारत में
ब्रह्म(माध्व) संप्रदाय के अंतर्गत '''ब्रह्ममाध्वगौड़ेश्वर(गौड़ीय) संप्रदाय''' जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीमन्महाप्रभु चैतन्यदेव हुए और श्री(रामानुज) संप्रदाय के अंतर्गत '''रामानंदी संप्रदाय''' जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य हुए ।
रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को भक्ति का उपदेश किया।दिया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री [[श्रीरामचरितमानस|रामचरितमानस]] की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ - विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया।
मध्यकालीन वैष्णव आचार्यों ने भक्ति के लिए सभी वर्ण और जाति के लिए मार्ग खोला,
परंतु रामानंदाचार्य वर्ण व्यवस्था अनुरूप दो अलग अलग परंपरा चलायी गईं, जय हरी वैष्णव धर्म के अंदर भक्ति का प्रमुख स्थान है।
वैष्णव धर्म का दृष्टिकोण सार्वजनिक और व्यापक था गीता के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए तपस्या और सन्यास अनिवार्य नहीं है मनुष्य गृहस्ती में रहते हुए भी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है