"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर

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वे चौदहवीं सदी के एक तंवर राजपूत शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं।
 
 
रुणिचा यहां पर जीवित समाधि ली थी. अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने सामाजिक समरसता का संदेश देते हुए छुआछूत भेदभाव मिटाने सहित जन हितार्थ कल्याण के कार्य किए थे
 
रामदेव जी का ससुराल
पश्चिम राजस्थान के पोकरण के पास रुणिचा में राजा अजमाल जी तंवर के घर भादो शुक्ल पक्ष दोज के दिन विक्रम सम्वत 1409 को बाबा रामदेवजी का जन्म हुआ था। उनका विवाह अमर कोट में नैतलदे के साथ हुआ गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार था।
 
इनके पांच पुत्र हुए – गजराजजी, महराजजी (मेहराजजी) भींवोजी, बांकोजी और जेतोजी।
 
सुगना बाई की एक बहन भी थी जिसका नाम लांछा था और वो इनसे आयु में थोड़ी छोटी थी. सुगना बाई के सगे दो भाई थे रामदेवजी और वीरमदेव, दोनों भाई सुगना बाई को बहुत प्रेम करते थे. सुगना बाई घर में सबकी लाडली पुत्री थी. सुगना बाई का विवाह पूंगलगढ़ के पड़िहार राजवंश में हुआ था उनके पति का नाम कुंवर उदयसिंह पड़िहार था
 
==पृष्ठभूमि==