"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर
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रामदेवरा का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बाबा रामदेवजी धाम
रामदेवरा के निर्माता बाबा रामदेवजी का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्ववाद में हुआ था। उस काल में राजस्थान तो क्या पूरे भारतवर्ष की दशा दयनीय थी। समग्र भू भाग पर विदेशी द्वारा पदाक्रांत था। पराजय पर पराजय के थपेड़ों से यहां का जन मानस हीन भावना से ग्रसित हो चुका था। शान सत्ता छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित थी। सर्वोच्च सत्ता की ओर से साम्प्रदायिक विद्वेष इतना जोर पकड़ चुका था कि वर्गविशेष जनता को उनके नित्यकर्म करने तक का अधिकार न था। इतने पर भी उस वर्गविशेष में छोटे बडे, ऊंच-नीच, जात-पात, छुआछूत की भ्रांति अपनी चरम अवस्था पर थी। अनेक मत मतान्तरों का उदय हो चुका था। ऐसी ही विकट परिस्थिति में
जिन दिनों बाबा रामदेवजी का अवतरण हुआ उन दिनों राजस्थान के पश्चिमी भूभाग पर साथलमेर (वर्तमान पोखरण के समीप) के कुख्यात भैरव का राक्षस का प्रबल उत्पात था। जिसके कारण आसपास के सैकडों गांव उजड चुके थे। दुर्भाग्यवश यदि कोई जीवधारी उक्त भैरव के अधिकार क्षेत्र में चला जाता तो वह दुष्ट उस प्राणी को नहीं छोड़ता। मानव देहधारियों में केवल एक तपोनिष्ठ साधु थे। जो भैरव के दुष्प्रभाव से प्रभावित नहीं हुआ थे। उनका नाम था जोगी बालीनाथ। ये ही जोगी बालीनाथ जी महाराज आगे जाकर बाबा रामदेव जी के धर्म गुरू के रूप प्रतिष्ठित हुए। वर्तमान पोखरण में इनका साधना स्थल विद्यमान है। तथा इनकी समाधि जोधपुर के निकट मसूरिया नामक पहाडी पर बनी हुई है। बाबा रामदेव जी ने यद्यपि अनेक बाल लीलाएँ की थी, परंतु उन सब में रामदेव और राक्षस भैरव दमन लीला ने वहां के क्षेत्रिय जन मानस को अत्यंत प्रभावित किया।
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