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गोरी तेरे सुत ने नितारा सिमरे लोग दिन र सिमरे ब्राह्मण ने वनिया रात संत ने चोर
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'''दोहा[[गोरी तेरे सुत ने नितारा सिमरे लोग दिन र सिमरे ब्राह्मण ने वनिया रात संत ने चोर]]''' [[अर्द्धसम]] [[मात्रिक]] [[छंद]] है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों प्रथम तथा तृतीय में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों द्वितीय तथा चतुर्थ में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण सlक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात् अन्त में लघु होता है।
 
उदाहरण-
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दोहा" से प्राप्त