"संत तुकाराम": अवतरणों में अंतर

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तुकाराम की आत्मनिष्ठ अभंगवाणी जनसाधारण को भी परम प्रिय लगती है। इसका प्रमुख कारण है कि सामान्य मानव के हृदय में उद्भूत होनेवाले सुख, दु:ख, आशा, निराशा, राग, लोभ आदि का प्रकटीकरण इसमें दिखलाई पड़ता है। तुकाराम के वाड्मंय ने जनका के हृदय में ध्रुव स्थान प्राप्त कर लिया है। ज्ञानेश्वर, नामदेव आदि संतों ने भागवत धर्म की पत्ताका को अपने कंधों पर ही लिया था किंतु तुकाराम ने उसे अपने जीवनकाल ही में अधिक ऊँचे स्थान पर फहरा दिया। उन्होने अध्यात्मज्ञान को सुलभ बनाया तथा भक्ति का डंका बजाते हुए आवाल वृद्धो के लिये सहज सुलभ साध्य ऐसे भक्ति मार्ग को अधिक उज्वल कर दिया।
 
संत शिरोमणी श्री तुकाराम जी के बारे में प्रचलित एक लोक गाथा यह भी है कि उन्हें वैकुंण्ठ से विमान लेने के लिए आया जिसमें वे बैठकर वैकुंण्ठ गये ।
 
== तुकाराम की मूल शिक्षाएँ ==