"राजा महेन्द्र प्रताप सिंह": अवतरणों में अंतर

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महेन्द्र प्रताप का जन्म १ दिसम्बर १८८६ को एक [[जाट]] परिवार में हुआ था जो [[मुरसान रियासत]] के शासक थे। यह रियासत वर्तमान [[उत्तर प्रदेश]] के [[हाथरस जिला|हाथरस जिले]] में थी। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे। जब वे ३ वर्ष के थे तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया। १९०२ में उनका [[विवाह]] बलवीर कौर से हुआ था जो [[जिन्द रियासत]] के सिद्धू जाट परिवार की थीं। विवाह के समय वे कॉलेज की शिक्षा ले रहे थे।
 
[[हाथरस]] के [[जाट]] राजा दयाराम ने 1817 में अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया। [[मुरसान]] के [[जाट]] राजा ने भी युद्ध में जमकर साथ दिया। अंग्रेजों ने दयाराम को बंदी बना लिया। 1841 में दयाराम का देहान्त हो गया। उनके पुत्र गोविन्दसिंह Thanua गद्दी पर बैठे। 1857 में गोविन्दसिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया फिर भी अंग्रेजों ने गोविन्दसिंह का राज्य लौटाया नहीं - कुछ गाँव, 50 हजार रुपये नकद और राजा की पदवी देकर हाथरस राज्य पर पूरा अधिकार छीन लिया। राजा गोविन्दसिंह की 1861 में मृत्यु हुई। संतान न होने पर अपनी पत्नी को पुत्र गोद लेने का अधिकार दे गये। अत: रानी साहबकुँवरि ने जटोई के ठाकुर रूपसिंह के पुत्र हरनारायण सिंह को गोद ले लिया। अपने दत्तक पुत्र के साथ रानी अपने महल वृन्दावन में रहने लगी। राजा हरनारायन को कोई पुत्र नहीं था। अत: उन्होंने मुरसान के राजा घनश्यामसिंह के तीसरे पुत्र महेन्द्र प्रताप को गोद ले लिया। इस प्रकार महेन्द्र प्रताप मुरसान राज्य को छोड़कर हाथरस राज्य के राजा बने। हाथरस राज्य का [[वृन्दावन]] में विशाल महल है उसमें ही महेन्द्र प्रताप का शैशव काल बीता। बड़ी सुख सुविधाएँ मिली। महेन्द्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को हुआ। [[अलीगढ़]] में सैयद खाँ द्वारा स्थापित स्कूल में बी. ए. तक शिक्षा ली लेकिन बी. ए. की परीक्षा में पारिवारिक संकटों के कारण बैठ न सके।
 
[[जींद की रियासत|जिंद रियासत]] के राजा की राजकुमारी से [[संगरूर, पंजाब|संगरूर]] में [[विवाह]] हुआ। दो स्पेशल ट्रेन बारात लेकर गई। बड़ी धूमधाम से विवाह हुआ। विवाह के बाद जब कभी महेन्द्र प्रताप ससुराल जाते तो उन्हें 11 तोपों की सलामी दी जाती। स्टेशन पर सभी अफसर स्वागत करते। रात को दरबार गता और नृत्य-गान चलता जिसमें कभी-कभी रानी भी भाग लेती। उनके 1909 में पुत्री हुई-भक्ति, 1913 में पुत्र हुआ-प्रेम। देश-विदेश की खूब यात्राएँ कीं। 1906 में जिंद के महाराजा की इच्छा के विरुद्ध राजा महेन्द्र प्रताप ने [[कोलकाता|कलकत्ता]] ने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अधिवेशन में भाग लिया और वहाँ से [[स्वदेशी]] के रंग में रंगकर लौटे।