"महाराजा रणजीत सिंह": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox royalty
| name = महाराजा रणजीत सिंह जाट
| image = RanjitSingh by ManuSaluja.jpg
| caption = महाराजा रणजीत सिंह 'संधवालिया'
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उन्होंने पंजाब में क़ानून एवं व्यवस्था क़ायम की और कभी भी किसी को [[मृत्युदण्ड]] नहीं दिया।<ref>{{cite web|url=http://pib.nic.in/feature/feyr2000/fnov2000/f231120002.html|title=Peace and Progress|publisher=pib.nic.in|accessdate=17 जुलाई 2017|archive-url=https://web.archive.org/web/20170702172055/http://pib.nic.in/feature/feyr2000/fnov2000/f231120002.html|archive-date=2 जुलाई 2017|url-status=live}}</ref> उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले [[जज़िया|जज़िया]] पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने [[अमृतसर]] के [[हरिमन्दिर साहिब]] गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।
 
बेशक़ीमती हीरा [[कोहिनूर हीरा|कोहिनूर]] महाराजा रणजीत सिंह के ख़ज़ाने की रौनक था। सन् 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि [[लाहौर]] में बनवाई गई, जो आज भी वहां क़ायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। [[अंग्रेज-सिख युद्ध]] के बाद 30 मार्च 1849 के दिन पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर [[महारानी विक्टोरिया]] के हुज़ूर में पेश कर दिया गया। और जाटों का बेशकीमती हीरा अंग्रेजो के पास चला गया
 
== परिचय ==