|death_date = {{death date and age|1961|3|7|1887|9|101|df=y}}
|death_place = [[नई दिल्ली]], [[भारत]]
|profession = वकालत
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[[चित्र:Statue of Govindballabh Pant, at Mall Road, Nainital.jpg|right|thumb|300px|[[नैनीताल]] में गोविन्द वल्लभ पन्त की प्रतिमा]]
'''पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त''' या '''जी॰बी॰ पन्त''' (जन्म १o१ सितम्बर १८८७ - ७ मार्च १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय [[राजनेता]] थे। वे [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के प्रथम [[मुख्यमन्त्री (भारत)|मुख्य मन्त्री]] और भारत के चौथे गृहमंत्री थे।<ref>{{Cite web |url=http://www.liveindia.com/freedomfighters/8.html |title=Govind Ballabh Pant गोविन्द वल्लभ पन्त |access-date=10 सितंबर 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190817190310/http://www.gbpuat.ac.in/ |archive-date=17 अगस्त 2019 |url-status=dead }}</ref> सन 1957 में उन्हें [[भारत रत्न|भारतरत्न]] से सम्मानित किया गया। गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा [[हिन्दी]] को [[भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी|भारत की राजभाषा]] के रूप में प्रतिष्ठित करना था।<ref>"[http://www.gbpec.net/gbpant.html Govind Ballabh Pant Engineering College, Pauri Garhwal, Uttarakhand] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20121225073145/http://www.gbpec.net/gbpant.html |date=25 दिसंबर 2012 }}". Gbpec.net. Retrieved 1 January 2013.</ref>
== प्रारम्भिक जीवन ==
इनका जन्म १o१ सितम्बर १८८७ को [[अल्मोड़ा जिला|अल्मोड़ा जिले]] के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित [[गाँव]] [[खूंट, अल्मोडा तहसील|खूंट]] में महाराष्ट्रीय मूल के एक कऱ्हाड़े ब्राह्मण कुटुंब में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की। १९०५ में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। १९०७ में बी०ए० और १९०९ में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से "लैम्सडेन अवार्ड" दिया गया।
१९१० में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। वकालत के सिलसिले में वे पहले [[रानीखेत]] गये फिर [[काशीपुर]] में जाकर प्रेम सभा नाम से एक संस्था का गठन किया जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बाँधने में ही खैरियत समझी।