"भानुभक्त आचार्य": अवतरणों में अंतर
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प्राचीन काल में नेपाली सहित दक्षिण एशियाई भाषाएँ ज़्यादातर मौखिक माध्यम तक सीमित थीं जिसकी वजह से सो भाषाओं में लेखन कम ही होता था। दक्षिण एशिया के लिखित ग्रंथ अधिकांश संस्कृत में उपलब्ध होने की वजह से वे आम जनता के लिए अगम्य थे। चूँकि शिक्षकों, छात्रों और पंडितों के पद में ब्राह्मणों की अग्रता थी, सभी धर्म ग्रंथों तथा अन्य साहित्यिक कृतियों की पहुँच ब्राह्मणों और संस्कृत में शिक्षा प्राप्त करनेवाले व्यक्तियों तक सीमित थे। नेपाल में संस्कृत में कविता रचना तो होती थी लेकिन आचार्य ने नेपाली भाषा में कविता लिखना शुरू किया जिसकी वजह से भाषा के प्रवर्द्धन के साथ ही उन्होंने राणा शासकों से समर्थन प्राप्त किया। राम गाथा सुनने के बाद उनमें रामायण को नेपाली में अनुवाद करने की इच्छा जागृत हुई। विद्वान मानते हैं कि भौगोलिक प्रभाव और आंतरिक मर्म को बरक़रार रखते हुए अनुदित ''[[भानुभक्तीय रामायण]]'' में वाल्मीकीय रामायण का भाव मौजूद है जिसकी वजह से यह कृति कविता होने के बावजूद गाना जैसी सुनती है।
आचार्य ने न ही कभी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की न ही वे विदेशी साहित्य से परिचित थे जिसके कारण उनकी कृतियों में एक विशिष्ट नेपाली स्पर्श पाया जाता है। उनकी कृतियाँ आम तौर पर धर्म, सादगी और देशभक्ति जैसी भारी विषयों पर आधारित होने के बावजूद सरल भाषा में प्रस्तुत हैं। धनाढ्य परिवार में पैदा होने के कारण उन्हें जीवन में तब तक किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं हुई जब तक उनकी एक घासी से मुलाक़ात हुई। उस घासी से बातचीत करने के बाद आचार्य भी अपने समाज को प्रभावित करनेवाले योगदान देने को प्रभावित हुए। उन्होंने अपने जीवन में कुल दो उत्कृष्ट रचनाएँ लिखीं जिनमें ''भानुभक्तीय रामायण'' और कारावास में प्रधानमंत्री के लिए लिखा गया चिट्ठी समावेश होते हैं। आधिकारिक काग़ज़ात में हस्ताक्षार करते समय हुई ग़लतफ़हमी की वजह से उन्हें कारावास की
==विरासत==
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