"भारतीय परिषद अधिनियम १९०९": अवतरणों में अंतर

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'''भारत परिषद अधिनियम''' (''इंडिया कॉउंसिल्स एक्ट''), वर्ष १९०९ में [[ब्रिटिश संसद]] द्वारा पारित एक अधिनियम था, जिसे [[ब्रिटिश भारत]] में स्वशासित शासन प्रणाली स्थापित करने के लक्ष्य से पारित किया गया था। यह '''मार्ले-मिन्टो सुधार''' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस समय मार्ले [[भारत के राज्य सचिव]] एवं लार्ड मिन्टो [[भारत के वायसरॉय]] थे। इन्हीं दोनों के नाम पर इसे मार्ले-मिन्टो सुधारों की संज्ञा दी गयी। [[ब्रिटिश सरकार]] द्वारा इन सुधारों को प्रस्तुत करने के पीछे मुख्य दो घटनायएँ थीं। इसके पहले अक्टूबर 1906 में [[आगा खां]] के नेतृत्व में मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला था और मांग की कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये। प्रतिनिधिमंडल ने तर्क दिया कि ‘उनकी साम्राज्य की सेवा’ के लिए उन्हें पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व दिया जाये। इसमें प्रश्न पूछने के लिए अधिकार दिया गया था इस अधिक अधिनियम के तहत निर्वाचन पद्धति की शुरुआत हुआ निर्वाचन पद्धति अप्रत्यक्ष तरीके से होती थी जो कि मनोनीत के रूप में जाना जाता थाथा। इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को उजागर कर दिया और लार्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।
 
==पृष्ठभूमि==