"शैव": अवतरणों में अंतर

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(10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे । आज के समय में लोगों से निवेदन है कि ऐसे तौर तरीके न अपनाएं । मात्र मंत्रों से भगवान शिव का पूजन करने से ही जीवन के दुःख , दर्द , बीमारियां दूर हो जाते हैं । आप सभी से विनम्र निवेदन है कि पाशुपत भक्तिविधा आवश्यक नहीं है कृपया सभी भक्त सात्विक विधाओं से ही भगवान शिव की आराधना करें । पाशुपत या कालामुख भक्ति विधाओं को न अपनाने से भी भक्त सात्विक तरीके से भी भगवान शिव को प्रसन्न करके जीवन का उद्धार बेहतर कर सकता है और इहलोक और परलोक दोनों में ही सद्गति को प्राप्त करता है । भगवान शिव कभी नहीं कहे कि सुरापान , मांस खाना आदि भक्त कर सकते हैं या उन्हें करना चाहिए बल्कि सत्य तथ्य तो इसके ठीक विपरीत है , भगवान शिव की भक्ति में सुरापान , मांस खाना ..इत्यादि जैसे तामसिक कार्य वर्जित हैं । भगवान शिव की भक्ति शुद्ध और सच्चे मन से होनी चाहिए । किसी भी पुराण , वेद , ..में ये वर्णित नहीं है कि भगवान शिव या उनका कोई अवतार या उनका कोई भक्त शराब पीता है या मांस खाता है या पापाचार करता है । इसलिए यदि आप भगवान शिव की भक्ति करते हों तो मांस न खाएं और शराब न पिएं ।
 
(11) [[लिंगायत मत|लिंगायत]] समुदाय दक्षिण भारत में काफी प्रचलित है । इन्हें जंगम संप्रदाय भी कहा जाता है , इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की पुजा इष्टलिंग के स्वरूप में उपासना करते हैं।थे।
 
(12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक बसवण्णा[[वल्लभ याप्रभु]] बसवेश्वरऔर उनके शिष्य [[बासव|बसव]] को बताया गया है, इस संप्रदाय को [[वीरशिव संप्रदाय|वीरशैव]] भी कहा जाता था।
 
(13) दसवीं शताब्दी में [[मत्स्येंद्रनाथ]] ने [[नाथ संप्रदाय]] की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा [[गोरखनाथ]] के समय में हुआ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शैव" से प्राप्त