"स्वराज": अवतरणों में अंतर

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'''स्वराज''' का शाब्दिक अर्थ है - ‘स्वशासन’ या "अपना राज्य"। [[भारत]] के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा [[स्वाधीनता]] की मांग पर बल देता था। स्वराज शब्द का पहला प्रयोग स्वामी [[दयानन्द सरस्वती]] ने किया था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए ‘स्वशासन’ के स्थान पर ‘अच्छी सरकार’ (ब्रिटिश सरकार) के लक्ष्य को वरीयता दी। तत्पश्चात् उग्रवादी काल में यह शब्द लोकप्रिय हुआ, इसके बाद इस शब्द का प्रयोग [[गोपाल कृष्ण गोखले]] द्वारा 1905 ईस्वी में किया गया फिर यह पहली बार आधिकारिक तौर से इसे [[दादा भाई नौरोजी]] द्वारा 1906 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में मांग रखा गया यह तब और ज्यादा सुर्खियों में आया जब [[बाल गंगाधर तिलक]] ने 1916 में होमरुल लिंग की स्थापना के समय यह उद्घोषणा की कि ‘‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’’ [[महात्मा गांधी]] ने सर्वप्रथम 1920 में कहा कि ‘‘मेरा स्वराज भारत के लिए संसदीय शासन की मांग है, जो वयस्क मताधिकार पर आधारित होगा। गांधी का मत था स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो।’’ वस्तुत: गांधीजी का स्वराज का विचार [[ब्रिटेन]] के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, नौकरशाही, कानूनी, सैनिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करने का आन्दोलन था। [[पूर्ण स्वराज]] की मांग पहली बार कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पंडित [[मोतीलालजवाहरलाल नेहरू]] द्वारा किया गया।
 
यद्यपि गांधीजी का स्वराज का सपना पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका फिर भी उनके द्वारा स्थापित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस दिशा में काफी प्रयास किए।